*फूफा*
*जैसा कि हम सभी को विदित है कि फूफा धरती की वह प्रजाति है जिसे किसी समारोह में निमंत्रण भी दिया जाता है और उसके आ जाने के बाद , उसके फूंक - फूंक कर कदम रखने के बावजूद , कुछ न कुछ ऐसा कर दिया जाता है कि उसे गुस्सा आ जाय । बाद में जब वो अपना नियंत्रण खो देता है तो कहा जाता है कि इसे निमंत्रण देना ही बेकार था ।*
*क्या सोचकर आपने उसे निमंत्रण दिया था ? फूफा आपका कार्ड देखकर खुश होगा , शाबाशी देगा ? ...वो आपके दावत का भूखा है ? उसे अपनी इज्जत की कोई परवाह नहीं ? ...भाई साहब अज्ञानी हैं आप । बात बात में फूफा के आचरण में नुक्स निकालने से पहले क्या एक बार भी आपने फूफा की जगह खुद को रखकर देखा है । अगर देखते तो उसे क्रोध न करना पड़ता और न ही आपको उसकी निंदा ।*
*मत भूलिए कि फूफा भी कभी दामाद था । अगर शादी के कुछ वर्षों बाद अधिकार और सम्मान में कटौती कर ही लेनी थी तो शुरू में ताड़ पर क्यों चढ़ाया ? चार तरह की मिठाई , विविध प्रकार के भोजन , बढ़िया बिस्तर , शादी के कई सालों तक क्यों दिए जाते रहे ? जो कमसिन साली पहले मजाक करने पर मुँह छुपाकर खिलखिलाते हुए भाग खड़ी होती थी , आज चार बच्चों की माँ हो जाने के बाद एकदम से बिफर क्यों पड़ती है , नाक - भौं क्यों सिकोड़ती है ? बचपन में यही सिखाया था उसे , ऐसे होते हैं संस्कार ? फूफा से आखिर क्यों नहीं पूछा जाता कि आज खाने में क्या बनेगा ? इसके बाद भी आप पूछते हैं फूफा नाराज क्यों है ।*
*हाल के दिनों की बार करें तो पातकीनाथ नाम के एक सज्जन जो मेरे ही गाँव के हैं , अपनी ससुराल गए । साले के लड़के का तिलक था । तिलक के दो दिन पहले से उन्होंने तैयारी शुरू कर दी , बाल और जूते रंग डाले , कपड़े अच्छे से स्त्री कर ली , खैनी खाने से पीले पड़े दाँतों को डेंटिस्ट के पास जाकर साफ करा लिया । शाम को तिलक चढ़नी थी , ये दोपहर में ही पहुँच गए । पहुँचने पर न कोई विशेष स्वागत न खुशी का इजहार और तो और बड़े साले ने जले पर नमक भी छिड़क दिया - इतनी धूप में क्यों आये पातकी बाबू ? तिलक तो शाम में चढ़नी है न ?*
*पसीना - पसीना हुए पातकीनाथ को क्रोध से काँप गए , मन में आया कि कह दें कि "अरे साले धूप की इतनी ही फिक्र है तो शर्बत में बर्फ का इंतजाम क्यों नहीं किया ? मेरे वापस चले जाने पर ही कलेजा ठंडा होगा क्या तुम्हारा ? "मगर जाने क्यों खुद पर कंट्रोल किया और चुपचाप बैठे रहे । कुछ देर बाद साले का लड़का जिसकी तिलक चढ़नी थी सबको डियो छिड़कते हुए बताने लगा कि " विदेश से मंगाया है , दो हजार का है " उस कमरे में बैठे हर आदमी को उसने डियो लगाया लेकिन जैसे ही पातकी जी के पास आया नाक सिकोड़ ली -"अरे फूफा जी ये कौन सा घटिया सेंट लगाकर आ गए आप ?" कहकर बाहर निकल गया ।*
*पातकी के मन में आया कि उसका झोंटा पकड़ कर कस के दो मुक्का हन दें , लेकिन पत्नी की हिदायत का मान रखा और चुप रहे ।*
*थोड़ी देर बाद साले का दामाद आया , लगा कि भगवान पधारे हैं , टेबल फैन पातकी के पास से हटाकर उसकी ओर कर दिया गया , साले ने पूछा -"बाबू भूख लगी होगी आपको , चलिए पहले भोजन करिए फिर आराम कीजियेगा ।"*
*पातकी को इस पर गुस्सा नहीं आएगा तो क्या खुश होंगे ? दो घण्टे से आकर बैठे हैं लेकिन उनके खाने की फिक्र नहीं कर रहे साले , दस मिनट पहले आया दामाद मानो खाने के बिना मरा जा रहा है , उसे अंदर लिए जा रहे हैं पापी , अब भी पातकी से खाने के लिए नहीं पूछा जा रहा । जब दामाद खाकर आ गया तब पातकी जी की पत्नी आकर बोलीं -"बैठे काहें हैं चलिए खाना खा लीजिये !"*
*क्या कोई इज्जतदार अब खाना खाने जाएगा ? पातकी नाथ भी एक इज्जतदार आदमी हैं , पत्नी को देख त्यौरियां चढ़ा कर बोले -"कभी देखी हो क्या तीन बजे खाना खाते हुए ? "...हालाँकि भूख खूब लगी थी उन्हें ।*
*पत्नी " हुँह " कर मुँह बिचकाती चली गयी । पातकीनाथ खून का घूँट पीकर मन में बुदबुदाये -" तुम घर चलो तब बताते हैं ।"*
*शाम होने को थी , जो लड़का उनके माला सेंट को घटिया बता कर गया था , पास आकर बोला -" फूफा जी जल्दी अपनी मोटरसाइकिल दीजिये , काजू की बर्फी लानी है ।"*
*अब तक उपेक्षा के शिकार पातकी जी ने गुस्सा थूक दिया , सोचा मेरी न सही मेरी गाड़ी की तो पूछ है । चाबी सौंप दी । आधे घण्टे बाद ये जब दरवाजे पर बैठकर हलवाइयों पर नजर गड़ाए हुए थे , तभी साले के लड़के का पैदल आगमन हुआ । वो गुस्से में था -"गाड़ी चलाते हैं तो कागज क्यों नहीं रखते आप ?"*
*-"कागज तो हइये है , क्या हुआ ?"..कहते हुए पैंट की पिछली जेब से कागज निकाल कर दिखाया पातकी जी ने ।*
*साले का लड़का गुर्राया -" गाड़ी की डिक्की में रखना होता है कागज , अपनी डिक्की में नहीं । गाड़ी का चालान हो गया है , थाने से छुड़ाना पड़ेगा ।"...कहकर वो मिठाई का डिब्बा लिए भीतर चला गया ।*
*इस मुसीबत से पातकी जी बौखला गए थे , लेकिन फिर भी कंट्रोल किया ।*
*रात हुई , तिलक चढ़ाने का कार्यक्रम शुरू होने वाला था , भूखे - प्यासे पातकीनाथ सब कुछ भुलाकर सबसे आगे के सोफे पर बैठ चुके थे । रह - रहकर निगाह आइसक्रीम की स्टॉल की तरफ चली जाती । आइसक्रीम पातकी जी को बहुत प्रिय है , सोफे से उठकर आइसक्रीम वाले के पास चले गए और रौबदार आवाज में बोले -" बटरस्कॉच फ्लेवर है कि नहीं ?"*
*-"बिलकुल है ।"*
*-"जरा निकालो !"*
*आइसक्रीम वाले में कोई हरकत न देखकर दोबारा बोले -" अरे निकालो भाई !"*
*-"तिलक चढ़ने के बाद आइसक्रीम शुरू होगा ।"*
*-"मगर कुछ लोग तो खा रहे हैं ।"*
*-"अभी जिनको वो कहेंगे उन्हीं को देना है , ऐसा जिनका तिलक है , उन भैया ने कहा है ।"...कहकर उसने एक आदमी की तरफ इशारा किया , फिर बोला-"आप भी उनसे कहलवा दीजिये तो आपको भी दे दूँगा ।"*
*पातकीनाथ नाथ ने देखा कि वो आइसक्रीम वाला निमंत्रण में मिल रहे लिफाफे इकट्ठा कर रहे साले के दामाद की ओर इशारा कर रहा है । अब यह कितना बेइज्जती भरा कदम होता यदि पातकीनाथ एक अदद आइसक्रीम के लिए उससे जाकर सोर्स लगाते , मन मारकर वापस सोफे की तरफ आये , यहाँ उनकी जगह उनके साले साहब आसन जमा चुके थे । इन्हें देखकर बोले -"खड़े काहें हैं पातकीनाथ बाबू ! उधर से एक ठो प्लास्टिक वाली कुर्सिया खींच काहें नहीं लेते ?"*
*जठराग्नि और अपमान में जल रहे पातकीनाथ से अब वहाँ और रुका नहीं गया । टेंट वाली गाड़ी कुछ सामान लेने के लिए शहर की तरफ जा रही थी , ये उसी पर चढ़े और थाने पहुँच गए । दरोगा संयोग से इनका जिगरी यार निकला , गाड़ी बिना किसी खर्चे के मिल गयी । चलने लगे तो दारोगा ने कहा -"किसी और सेवा की जरूरत हो तो हिचकना मत ।"*
*बेइज्जती से आहत पातकीनाथ के दिल में बदले की भावना ने सिर उठाया -" सेवा क्या है दोस्त ? बस एक जरूरी सूचना देना अपना फर्ज समझता हूँ । बगल के गाँव में तिलेसरनाथ नाम के आदमी के यहाँ तिलक कार्यक्रम है , उसमें कोविड नियमों को ताक पर रखकर सैकड़ों आदमियों को निमन्त्रित करके महामारी को बढ़ावा दिया जा रहा है ।"*
*दारोगा ने वो वीडियो देखा था जिसमें एक डीएम ने जाकर शादी कार्यक्रम रुकवाया था । उसकी भुजाएं फड़क उठीं , पातकीनाथ को गले लगाकर बोला -" अब कल का अखबार पढ़ना दोस्त ।"*
*पातकीनाथ मोटरसाइकिल लेकर घर चले आये । गैस पर खिचड़ी चढ़ाए ही थे कि पत्नी का फोन आया -" आप रिश्तेदार हैं कि दुश्मन जी ? कितना बेज्जती हुआ भैया का । आखिर का मिला आपको तिलक में पुलिस को बुलाकर ?"*
*पातकीनाथ मुस्कुरा कर बोले -" सुकून !"*
*-"सारा सुकून हम निकालेंगे आपका आकर , नाक काट दिया आपने हमारा , सारा लोग आपको खलनायक बोल रहा है ।"*
*पातकीनाथ चिल्लाए -" हाँ मैं हूँ खलनायक !जो बिगाड़ना हो बिगाड़ लेना ।"कहकर उन्होंने फोन काट दिया ।*
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