Monday, May 24, 2021

सतसंग DB -RS शाम 24/05

 **राधास्वामी!! 24-05-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                    

(1) अरे सुमिरन करले मूढ जना। क्यों जग सँग भूल भुलाना रे।।टेक।।

मानुष जन्म अमोलक पायो। काहे भूल भुलाना रे।।

 -(जो चाहो पूरा उद्धारा। राधास्वामी सरन गहाना रे।।)

 (प्रेमबिलास-शब्द-60-पृ.सं.78,79,

-दयाल नगर ब्राँच-(विशाखापत्तनम)-अधिकतम उपस्थिति-104)   

                                                         (

2) अरे मन भूल रहा जग माहिं। पकडता क्यों नहिं सतगुरु बाहँ।। होत तेरे घट में धुन हर दम। सुरत से सुनो चित्त कर सम।।-(फँसा मन माया की फाँसी। कुमत ने डाली हिय गाँसी।।) (प्रेमबानी-1-शब्द-27-पृ.सं.40)                                                             

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग तीसरा-कल से आगे!!                                                             

सतसंग के बाद:-                                                  

(1) राधास्वामी मूल नाम।।                               

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                     

(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)                                        

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**राधास्वामी!! 24-05-2021-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-

[बेचारा सत्संगी]-(7)-

 सत्संगी के विचारों, भावों और सिद्धांतों का वर्णन करने के बाद उचित है कि कुछ जिक्र उसकी विवशता का भी किया जाय।।                                              

जोकि एक गृहस्थ होने के कारण सत्संगी का हर प्रकार के लोगों से काम पड़ता है इसलिए उसके गैरसत्संगी संबंधी और कुटुम्बी उसे हू- हक के जीवन से किनारा खींचे हुए देखकर तरह तरह की शंकाएँ करने और उसे दीन- अधीन देख कर हृदयहीन समझने लगते हैं ।

कोई कहता है कि सतसंग में सम्मिलित होने से उसका चित्त संसार से उचट गया है और वह साधु बना चाहता है। कोई कहता है कि सुरत- शब्द-अभ्यास से उसका दिमाग बिगड़ गया है।

उसके आर्य- समाजी, सिक्स और सनातन धर्मी इष्ट मित्र तो खरी-खरी सुनाते हैं। वह बेचारा सबकी सुनता है और शांत चित्त से सहन करता है। उसके हृदय से बार-बार यही प्रार्थना उठती है - "

हे परम पिता! इन्हें क्षमा करो क्योंकि यह समझते नहीं है कि क्या कह रहे हैं"।     

                                                      

 मिसाल के तौर पर, उससे एक गैरसतसंगी  संबंधी जोर देकर प्रश्न करता है." वह कौन सी नई बात थी जिसके लिए तुमने बाप दादा का धर्म छोड़कर राधास्वामी-मत ग्रहण किया?" वह बेचारा क्या उत्तर दें? स्पष्ट देखता है कि बाप दादा को न किसी धर्म से जानकारी थी, न प्रेम।  उन्होंने पूर्व पुरुषों से तर्कें ( दायभाग) में धन संपत्ति के साथ कुछ धार्मिक विचार और आचार प्राप्त किये थे, जिन्हें वे जन्मभर दोहरातें और पालन करते रहे। पर उन्हें कभी यह ध्यान न आया कि यथार्थता या उपयोगिता पूछें।वह लकीर के फकीर बने रहे। " जहाँ (संसार) में आये तो आंख बंद थी, चले जहाँ से तो आँख बंद है"। यह बेचारा उत्तर दे तो क्या दें?  बाप दादा का कोई विशेष धर्म हो तो उससे तुलना करके उत्तर दें।

क्रमशः                                                          

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻                                

यथार्थ- प्रकाश -भाग तीसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी

 महाराज!


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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