Monday, May 24, 2021

सतसंग DB-RS सुबह 25/05

 **राधास्वामी!! 25-05-2021-आज सुबह सतसंग में पढा गये पाठ:-                                                                                

(1) करो री कोइ सतसँग आज बनाय।।टेक।।

 नर देही तुम दुर्लभ पाई। अस औसर फिर मिले न आय।।

-(नभ चढ चलो शब्द में पेलो । राधास्वामी कहत बुझाय।।) (सारबचन-शब्द-4-पृ.सं.265,266-

दयालनगर ब्राँच(विशाखापत्तनम)-                  

  अधिकतम उपस्थिति-56) 

                                                     

(2) गुरु प्यारे से रलियाँ कर लो आज।।टेक।।

भाग जगे सतसँग में आई। भक्ति भाव का पाया साज।।-

(राधास्वामी मेहर से आगे चालो। चार लोक चढ भोगो राज।।)

 (प्रेमबानी-3-शब्द-61-पृ.सं.52,53)        

                                                                                                                       

  सतसंग के बाद:-                                                  

(1) राधास्वामी मूल नाम।।                               

   (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                   


  (3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।

।(प्रे.भा. मेलारामजी-फ्राँस)                                        

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर मेहतजी महाराज

-बचन भाग 1 -कल से आगे:-( 93)-

6 दिसंबर 1942 को लड़कों के सत्संग में हुजूर ने फरमाया- इस समय कागज की बहुत कमी है और आगे यह कमी और भी अधिक बढ़ जाने की आशंका है। इसलिये आवश्यकता इस बात की है कि कागज के उपयोग में जहाँ तक हो सके कमी की जावे और परीक्षा आदि में यथासंभव कागज खर्च न किया जावे। इस समय इस प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है कि छमाही परीक्षाएँ जो शीघ्र होने वाली है, जुबानी या किसी और ढंग से उसमें कागज कम से कम खर्च हो, ली जायँ।।                                                                                  

(94)- 24 दिसंबर 1942 को सतसंग में मौज से शब्द निकलवाया गया। यह शब्द निकला-                                                           

आज मेघा रिमझिम बरसे, हिये पिया की पीर सतावे।।टेक ।।                                                    

पिया छाय रहे परदेसा, मैं पड़ी काल के देसा।                                                    

 मोहि निसदिन यही रे अंदेसा, कोई पिया से आन मिलावे ।१।                                    

पपीहा जब पिउ पिउ गावे, मोहिं पिया प्यारे की याद आवे। बिरह अग्निन भड़क भड़कावे, पिया बिन को तपन बुझावे ।२।  (प्रेमबानी- भाग 4- शब्द 2)                        

हजूर ने पूछा- इस शब्द को सुनकर आप लोगों के दिल में क्या विचार पैदा हुआ? क्या आप लोगों के दिल में यह विचार पैदा हुआ कि आज हुजूर साहबजी महाराज को गये हुए 5 साल और 6 माह हो गये। पूछते समय हुजूर का गला भर आया। इसके बाद दूसरा शब्द मौज से निकलवाया-                            

  गुरु को ऊपर ऊपर गाता, गुरु को दिल भीतर नहीं लाता ।(सारबचन- शब्द 8)                       

   फरमाया- यह शब्द ऐसे लोगों के लिये हैं जिनको पिया की पीर नहीं सताती और जिन्होंने अपने प्रीतम की मौजूदगी में कपट का व्यवहार किया। ऐसे लोग विचार कर बतावें  कि इस शब्द की कड़ियाँ उन पर घटती है या नहीं। इसके बाद मौज से तीसरा शब्द निकलवाया गया-                                     

गुरु का में दामन पकड़ा, छोड़ूँ नहीं अब तो जकडा।( सारबचन- शब्द 12)                        

  क्रमशः                                                            

 🙏🏻 राधास्वामी🙏


**राधास्वामी!!( अमृत-बचन)

कल से आगे-( भूमिका)-

 पहले भाग में यह दिखलाकर कि मनुष्य- शरीर यानी आलममेसगीर छोटे पैमाने पर कुल रचना यानी आलममेकबीर की नकल है और दोनों में मेल मनुष्य -शरीर के अंदर वाकै छिद्रों द्वारा होता है और यह बयान करके कि मौजूदा हालत में सुरत की बैठक कहाँ पर है और परम और अविनाशी आनंद का स्थान कहाँ वाकै है दूसरे भाग में जैसा कि लाजिमी तौर पर मुनासिब था सूरत के जगाने और  दरमियानी मंडलों को पार करके उसको निर्मल चेतन धाम में पहुँचाने के तीन साधनों का वर्णन किया गया।

 दफा 55 के पढ़ने से मालूम होगा कि अंतरी साधनों की कमाई के लिए वक्त गुरु की शरण लेना निहायत जरूरी है क्योंकि साधनों की क्रियाएँ ऐसे अंतरी घाटों पर करनी होती है कि जिनसे अभ्यासी बिल्कुल नावाकिफ होता है उन घाटो के जगाने के लिए सतगुरु की अंतरी मदद दम दम पर दरकार होती है। अलावा इसके हर इंसान के ह्रदय में ऐसी अनेक कमजोरियां व कदूरतें छिपी रहती है कि जो वक्तन् फवक्तन्  अपना जोर दिखला कर न सिर्फ उसके शौक को ढीला कर देती है बल्कि उसको गलत रास्ते पर ले जाते हैं।

क्रमशः                                                    

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज -

प्रेम पत्र -भाग 2-

कल से आगे:-( 23 )

- ऊपर के लिखे हुए हाल से साफ जाहिर है कि क्या प्रमार्थ क्या स्वार्थ में जितनी बातें या चीजें हैं, सब मनुष्य स्वरूप से प्रकट हुई, और सब जगह मनुष्य स्वरूप का ही भाव और प्यार और पूजा और अदब और तहजीब ताजीम जारी है और मनुष्य स्वरूप ही की बानी और बचन और कायदे बांधे हुए पर व्यवहार पर कार्रवाई हर मुआमले में हो रही है।                                     ( 24)- और जिस वक्त में कि महात्मा और बुजुर्ग जिनकी ऐसी महिमा है, मौजूद होंगे, उस वक्त उनके संगी और मानने वाले उनके साथ ऐसा ही बल्कि इससे ज्यादा बर्ताव करते रहे होंगे जैसा कि अब उनकी नकल या मूर्ति और निशानों से कर रहे हैं ।।               

  क्रमशः🙏🏻, राधास्वामी🙏🏻


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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