**राधास्वामी!! 09-05-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) हे य रे प्यारे सतगुरु। तुम दाता अपर अपारा।। -(प्यारे राधास्वामी परम दयालि। मुझ दीन का करो गुजारा।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-2-पृ.सं.271,272/डेढगाँग ब्राँच-आधिकतम उपस्थिति-87)
(2) सतगुरु संत महा उपकारी। जगत उबारन दया बिचारी।।-(फिर औसर नहिं पाओ रूप ऐसा। अब कारज करो जैसा रे तैसा।। ) (प्रेमबानी-1-शब्द-18,पृ.सं.26,27,28)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
सतसंग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो ।(प्रे.भा. मेलारामजी-फ्राँस!)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
09-05-2021-
[राधास्वामी मत और नास्तिकता] :-(228)-
प्रश्न -आपकी एक पुस्तक में लिखा है कि असंख्य ब्रह्म और ईश्वर राधास्वामी के पैदा किए हुए हैं किंतु वेद- शास्त्र तो यही कहते हैं कि ब्राह्म और ईश्वर एक ही है। और सब मत तो यही मानते हैं कि परमात्मा सबका उत्पन्न करने वाला है। और यहाँ आपके स्वामीजी को परमात्मा का पैदा करने वाला बताया गया है।
उत्तर- यहाँ राधास्वामी से अभिप्राय देह- स्वरूप स्वामीजी महाराज नहीं है किंतु कुल मालिक राधास्वामी दयाल है और इस बचन में यह बतलाया गया है कि समस्त रचना केवल इसी एक त्रिलोकी में समाप्त नहीं हो जाती जिसमें कि हमारी पृथ्वी स्थित है , किंतु रचना में अनेक त्रिलोकियाँ है और प्रत्येक त्रिलोकी के प्रथक, प्रथक ,ब्रह्म और ईश्वर है, और यह सब ब्रह्म और ईश्वर सच्चे कुलमालिक के उत्पन्न किए हुए हैं। आपको इस बचन के अर्थ समझने में कठिनता इसलिए होती है कि आप ब्रह्म और ईश्वर ही को परमात्मा अर्थात कुलमालिक मानते हैं किंतु पिछले पृष्ठो में यह सविस्तर वर्णन हो चुका हैं कि सच्चे मालिक का धाम ब्रह्मपद के बहुत आगे है। इसलिए यदि यह बतलाया गया कि सच्चे कुल मालिक ने अनेक त्रिलोकियाँ और त्रिलोकीनाथ उत्पन्न किए तो क्या अन्याय हो गया? क्या गीता में कृष्ण महाराज ने अपने को सब भूतों (जानदारो) का सनातन बीज नहीं बतलाया?
अध्याय 7 का श्लोक 10 पढ़िये:-
वीजं मां सर्व-भूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्। इसका अर्थ यही तो है - "हे अर्जुन! मुझको सब जानदारों का सनातन अर्थात् (सदा स्थिर रहने वाला) बीज समझो "। तथा अध्याय 9 श्लोक 17 पर भी विचार कीजिए इस श्लोक का अर्थ निम्नलिखित है:-
"इस जगत का पिता मैं हूँ, माता मैं हूँ, पितामह मैं हूँ, सहारा देने वाला मैं हूँ, पवित्र जानने के योग्य 'ओम्' में हूँ, ऋक, यजुः और साम में हूँ"। क्या इन श्लोकों में 'मुझको' और 'मैं ' शब्दों का तात्पर्य देह-स्वरूप कृष्ण महाराज से है या उनके परब्रह्म स्वरूप से? क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!*
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