Sunday, May 9, 2021

सतसंग DB सुबह 10/05

 **राधास्वामी!!10-05-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गरे पाठ:-                                 

   (1) गुरु की कर हर दम पूजा। गुरु समान कोई दिन व न दूजा।।-(गुरु रुप धरा राधास्वामी। गुरु से बड नहीं अनामी।।) (सारबचन-शब्द-2-पृ.सं.322,323-तिमरनी ब्राँच-अधिकतम उपस्थिति-41)  

                                                           

   (2) गुरु प्यारे से मिल हुई आज निहाल।।टेक।। जब लग गुरु सतसँग नहिं पाया। फँसी रही माया के जाल।।-(राधास्वामी दया गई सतपुर में। दंग रहे काल और महाकाल।।) (प्रेमबानी 3--शब्द-48-पृ.सं.43)                                                                                                                               

 सतसंग के बाद:-                                            

  (1) राधास्वामी मूल नाम।।                              

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।।                                                                

 (3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)                           

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज

-भाग 1- कल से आगे:-( 83 )

23 फरवरी 1942 को सत्संग में 'सत्संग के उपदेश' भाग 1 से बचन नंबर 15 "सच्ची भक्ति की महिमा " पढ़ा गया। हुज़ूर ने इसके कुछ अंश को दोबारा पढ़वाया और फरमाया - आप लोगों को सच्ची भक्ति की इस मुख्य बात को भली भाँति समझ लेना चाहिए।                                        

 भक्ति करना कुछ गुरु महाराज पर जोर चलाना नहीं होता। भक्ति तो प्रेमवश और स्वभावतः होती है।।                                      

  ( 84)- 5 अप्रैल 1942- को प्रातः आरती के बाद हुज़ूर पुरनूर ने संगत से जो प्रशन पूछे और बचन फरमाया वह नीचे लिखा जाता है।                                                     

 फरमाया- मैं इस समय आप लोगों से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। आप कृपा करके उसका उत्तर साफ-साफ दें। आप बतलाइए कि किन किन  साहबान के दिल में लड्डू खाने का विचार पैदा हो रहा है। इस पर कुछ लोगों ने हाथ उठाये। फिर पूछा कि यदि साहबजी महाराज इस समय सत्संग में पधारे तो आप उनसे क्या मांगेंगे? इस पर एक साहब ने कहा कि हम प्रेम व भक्ति का दान माँगेंगे । प्रेमी भाई लालता प्रसाद 'शाद' ने कहा कि हुजूर साहबजी महाराज के पधारने के बारे में जो आपने फरमाया वह तो उस समय सही था जब वह यहाँ पर मौजूद न होते परंतु वह दयाल तो यहाँ पर मौजूद है और हमारे दिल का हाल पूछ रहे हैं। हुजूर ने इस बात को हँसी में टाल दिया और दूसरे लोगों से राय पूछी। एक साहब ने कहा कि उनको मालिक का प्रेम चाहिए। इस पर हुजूर ने फरमाया कि इस समय संसार में चारों ओर अंधेरा छाया हुआ है और जगह-जगह बम वर्षा हो रही है । लोगों में घबराहट व परेशानी फैल रही है। जगह जगह शहर खाली कराए जा रहे हैं।

दयालबाग में भी निर्बल और वृद्ध लोगों को यहाँ से चले जाने की सलाह दी जा रही है। इस समय प्रेम की  दात माँगना अवसर के अनुकूल नहीं है। हूज़ूर ने फरमाया यदि आपको वास्तव में यह दिखाई दे रहा है कि लड़ाई प्रतिदिन भयंकर रूप धारण करती जा रही है और संसार में आकाश पर आपत्तियों के बादल घिरे हुए हैं, तो आपको दिल में विचार पैदा होगा कि राधास्वामी दयाल सबकी रक्षा करें और सब की रोटी और कपड़ा देने का प्रबंध करें। हम देख रहे हैं कि कई जगह पर बादल बरस रहे हैं और कई जगह बरसने के लिए तैयार है। आप देख रहे हैं कि वे हमारे ऊपर छाए हुए हैं और जल्द बरसना चाहते हैं। क्रमशः                                         

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

[भगवद् गीता के उपदेश]

कल से आगे :-

और मन का शुद्ध और शांत रखना, मौन रहना, मन को वश में रखना, पवित्र विचार उठाना- ये मानस यानी मन के तप कहलाते हैं। अगर ये तीन प्रकार के तप सावधान होकर पूरी श्रद्धा के साथ और फल की इच्छा छोड़कर किये जावे तो ये सत्तवगुणी तप कहलाते हैं। जो तप ,इज्जत, नामवरी और बडाई  हासिल करने और दिखावे के लिए किया जाता है और चंचल व बेठिकाने हैं वह रजोगुणी कहलाता है और जो तप अज्ञानवश और अपने को कष्ट देकर किया जाता है या दूसरे को हानि पहुँचाने के निमित्त किया जाता है वह तामसी कहलाता है। जो दान बिना किसी बदलज के ख्माल के और धर्म समझ कर देश काल और पात्र देख कर किया जाता है वह सत्त्वगुणी है।【20】                             

 क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज

 -प्रेम पत्र -भाग 2- कल से आगे

:-[ मन और इंद्रियों का वर्णन]-

(1) यह मन जाहिरा इंद्रियों का आधीन मालूम होता है, यानी जिस तरफ इंद्रियाँ जाती है मन भी उसी तरफ जाता है । पर असल में इंद्रियों की चाल मन के हाल पर मुनह्सिर हैं, यानी जो मन भोगी और बिलासुध हैं वह हमेशा इंद्रियों के संग चंचल रहेगा और उसकी इंद्रियाँ भी भोगों में भरमती रहेंगी। पर जो मन परमार्थी है वह भी किसी कदर निश्चल रहता है और उसकी इंद्रियाँ भी मुनासिब तौर पर और मुनासिब तरफ जाती है, अंधाधुन चाल उनकी नहीं होती है।                                                       

  (2)-इस मन की अजीब बनावट है कि अपनी मानन यानी समझ के मुआफिक जल्द दुखी और सुखी हो जाता है और अहली दुख सुख का ख्याल बहुत कम करता है। इस वास्ते से इस बात की बड़ी जरूरत है तो परमार्थी जीव पहले कोई दिन सतगुरु या साथ गुरु यह सच्चे  अभ्यासी सत्संगी का सत्संग करें और बचन चित्त देकर होशियारी के साथ सुनें और उनका विचार भी करें और जो अपने फायदे की बातें होंवे। उनको फौरन् गृहण करता जावे और जो नुकसान की बातें होवें उनको छोड़ता जावे। तो कुछ अर्से में ऐसे प्रमार्थी की समझ और विचार बदल जावेगा, यानी उसकी समझ और हालत परमार्थी होती जावेगी और संसारी अंग और गुण जो कि थोड़े बहुत पशुओं के मुआफिक होते हैं, दूर होते जावेंगे और तब इस मन की मानन और समझ बदलेगी, यानी दुनियादारों के मुआफिक इस का व्यवहार और बर्ताव नहीं रहेगा बल्कि सच्चे भक्त और प्रेमीजनों की समझ और चाल इसमें आती जावेगी।                        क्रमशः                                                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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