*सारबचन (नसर)**/ (परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर स्वामीजी महाराज)*
*ख़ुलासा उपदेश हुज़ूर राधास्वामी साहब का (प्रेम प्रचारक दिनांक 10.5.2021 से आगे)*
*(58) ऐसे लोग जो कि ब्रह्मज्ञानी अपने को कहते हैं आजकल बहुत हैं और अपने को सबसे उत्तम जानते हैं। ब्रह्मज्ञान हक़ीक़त में इन सब अभ्यासों से, जिनका ज़िक्र पीछे हुआ, बहुत बड़ा है पर जो सच्चा होवे। और जो पोथियाँ पढ़ कर ज्ञान हुआ उसका नाम विद्या ज्ञान है, उससे मोक्ष कभी हासिल नहीं होगी, क्योंकि ज्ञान के ग्रंथों में जगह जगह लिखा है कि ‘तत्त्वज्ञान मनोवासना नाश’, यानी जब तक कि मन और बासना का नाश न होगा, तब तक तत्त्व यानी मालिक का ज्ञान हासिल न होगा।
और मन और बासना का नाश बिना योगाभ्यास के मुमकिन नहीं है। फिर जब तक कि योग की साधना नहीं करी, तो वह ज्ञान बाचक है। इस क़दर तो हर एक शख़्स जिसको विद्या हासिल हुई कह सकता है और समझ सकता है।* *फिर इसमें क्या बड़ाई हुई और मन और इंद्रियों का क्या दमन हुआ? आजकल जो अपने तईं ब्रह्मज्ञानी कहते हैं, जो उनसे पूछा जावे कि कहो क्या साधना करके तुमने ज्ञान पाया, तो नाराज़ हो जाते हैं।
बाजे़ कहते हैं कि पिछले जन्म में कर आये। जो यह बात सही होती तो उनको साधना की जुगती की ख़बर होती, यानी याद ज़रूर होनी चाहिये थी, क्योंकि ब्रह्मज्ञानी और ब्रह्म में कुछ भेद नहीं है। यह कहा है कि ‘‘ब्रह्मविद् ब्रह्मैव भवति’’ और* **दूसरा ‘‘इज़ातमउल फ़क़र फ़हो अल्ला हो’’।
फिर सूफ़ी या ज्ञानी को सब हालतों की ख़बर होनी चाहिये। और इन ब्रह्मज्ञानियों का यह हाल है कि इनको अपने मन और इंद्रियों की भी ख़बर नहीं कि वे क्या क्या काम उनसे करा रही हैं। ऐसी सूरत में अपने को ज्ञानी कहना और ब्रह्म मानना यह उनकी बड़ी भूल मालूम होती है और इसका फल वही है जो कर्मियों को मिलेगा, यानी चौरासी का चक्कर भोगना पड़ेगा।*
*(क्रमशः)*
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