Sunday, May 16, 2021

सतसंगRS DB शाम / 16/05

 **राधास्वामी!! 16-05-2021-(रविवार) आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                                                  

  (1) साँई हमरे गरीबनिवाज।।टेक।। बैरी दल चढ आये जुड मिल तीर तरकस साज। संत मत चहें करन खंडन ठान अपनो राज।।-(साँई हमरे राधास्वामी सहज राखी लाज। दीन होय उन चरन लागूँ गाऊँ गुन सुर साज।।)

 (प्रेमबिलास-शब्द-132-पृ.सं.197-डेढगाँव ब्राँच-आधिकतम उपस्थिति-87)   

                                                     

(2) राधास्वामी गुरु समरत्थ, चरनन लागो री।।-(राधास्वामी टेरत तोहि, सुन धुन भागो री।।) (प्रेबबानी-1-शब्द-22-पृ.सं.33,34)        

                                                      

  (3) यथार्थ-प्रकाश-भाग तीसरा-कल से आगे।                                                             

   सतसंग के बाद:-                                           

    (1) राधास्वामी मूल नाम।।                               

  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                    

 (3)  बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्रांस)          

स्पेशल सतसंग- स्व.प्रे. भा. प्रेम प्रसाद सतसंगी एवं स्व. प्रे. ब. पूणिमा कायस्थ:-  

                                                     

   गुरु  प्यारे चरन पर जाऊँ बलिहार।।टेक।। दया करी मोहिं खैंच बुलाया। सतसँग बचन सुनाये सार।।-(राधास्वामी दयाल दया की न्यारी। शब्द सुनाय उतारा पार।।) ( प्रेमबानी-3-शब्द-3-पृ.सं.13)                                            

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!! 16-05-2021

- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-कल से आगे-भूमिका का शेष :- यथार्थ- प्रकाश-भाग तीसरा-कल से आगे:-                                     

 इस पुस्तक के पढ़ने से मालूम होगा कि सच्चे ऋषियों, संतो, पैगंबरों और फकीरों ने धर्म या मजहब के संबंध में जो कुछ कृपा करके सिखलाया उसमें प्रकट समानता है, और स्पष्ट हो जायगा कि धार्मिक शिक्षा देने का केवल वही व्यक्ति अधिकारी हो सकता है जिसको अंतरी दृष्टि के द्वारा आध्यात्मिक अनुभवों का गौरव प्राप्त हो चुका है, और यह कि यदि किसी व्यक्ति को यह गौरव प्राप्त नहीं है तो चाहे वह कितना ही विद्वान और योग्य क्यों न हो और देखने में उसकी चाल- ढाल कैसी ही प्रशंसनीय क्यों न हो, वह आध्यात्मिकता से बिल्कुल अनजान है, तथा धर्म या मजहब के विषय में उसका मुँह खोलना सर्वथा अनुचित और अयोग्य है।

 इन पंक्तियों के लेखक को यह कहने में कुछ भी संकोच नहीं कि वर्तमान समय में धर्म के नाम पर जूझना अधिकतर इसी प्रकार के लोगों की प्रचंड प्रकृति का परिणाम है। आशा है कि धर्म के प्रेमी और सत्य के खोजी इस पुस्तक को ध्यानपूर्वक पढ़ने का कष्ट उठावेंगे और धर्म के नाम पर होने वाली लड़ाई का अंत करने के लिए सहायता का हाथ बढ़ावेंगे ।                                       

 पुस्तक के अंत में दो 'परिशिष्ट' भी दे दिए गये हैं । परिशिष्ट (अ) में वे 54 प्रश्न उत्तरसमेत उद्दघृत हैं जो आर्य-प्रतिनिधि सभा यू०पी० के एक मान्य  प्रतिनिधि से छान-बीन के अभिप्राय से किए गये, और परिशिष्ट (ब) में उन पुस्तकों के नाम दिये गये हैं जिनके उल्लेख यथार्थ प्रकाश में आयै हैं।क्रमशः                              

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻             

                             

【आनन्दस्वरुप】                                       

  [दयालबाग-8 फरवरी 1935 ई० तिथी बसंत पंचमी ]**

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