*परम गुरु हुजूर महाराज जी सतसंग में फ़रमाया करते थे,* कि जब इंसान का आखिरी समय आता हैं, जब मृत्यु बिल्कुल नजदीक होती हैं तो जो भी हमने सारा जीवन कर्म किए, जो कुछ किया वो सब सिनेमा की स्क्रीन की तरह बड़ा - बड़ा हमारी आंखों के सामने से गुजरता हैं। यानी सारी जिंदगी का शोर्ट रीकैप कुछ मिनट में सामने आ जाता हैं। और जो कर्म हमने अधिक बार दोहराया हैं, हमारी आत्मा उस तरफ चल पड़ती हैं और नया जन्म उसी प्रकार मिलता हैं।
*जहां आसा वहां वासा।*
तभी कहते हैं, *रोज भजन, सिमरन पर बैठो, मन लगे या न लगे पर बैठो जरूर।*
*जब हमारे जीवन के अंतिम पलों में सारे जीवन का शोर्ट रीकैप चलें तो उसमें सतसंग, सिमरन, भजन, मालिक की याद, सेवा, ये सब अधिक मात्रा में दिखाई दे। ताकि हमारी आत्मा का प्रवाह तुरन्त सतगुरु की और हो जाए।*
*राधास्वामी*
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