**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-बचन- भाग 1 -कल से आगे:-( 89)
एक इतवार को लड़कों के सत्संग में शब्द पढ़ा गया-
'सरन तेरी हम आये प्रभुजी लाज हमारी तुमको'।
शब्द समाप्त होने पर हुजूर पुरनूर ने पूछा कि वह नई चाल क्या है? फरमाया- वह भी चाल यही है कि सत्संगियों के बच्चे सरन आश्रम अस्पताल में पैदा हों, परवरिश पावें, यही के नर्सरी क्लासेज, स्कूल या कालेज में पढे और यहीं पर कोई सेवा अपने जिम्मे लें और अंत में समय आने पर हँसते खेलते यहाँ से रवाना हो जायँ।
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[ भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे:
- मनुष्य अपने स्वभाविक कर्मों द्वारा उसकी आज्ञा पालन करता हुआ, जिससे यह सारी रचना प्रकट हुई और जो इस कुल जगत में व्यापक है, सिद्धि को प्राप्त होता है। अपना धर्म चाहे गुण वाला भी न हो पालन करना बेहतर है बमुकाबिले दूसरे का धर्म पालन करने के चाहे वह गुण वाला भी हो (क्योंकि ऐसा करने में सृष्टि नियम का पालन होता है)। जो शख्स अपनी प्रकृति से नियत किया हुआ कर्म करता है उसके सिर्फ पाप नहीं चढता। हे अर्जुन! अपना स्वभाविक कर्म, चाहे वह दोषयुक्त भी हो, त्यागना नहीं चाहिये क्योंकि सच पूछो तो सारे ही कर्म दोषो से ऐसे घिरे हैं जैसे आग धुएँ से। जिसकी बुद्धि कहीं नहीं अटकी है, जिसका मन बस में है, जो इच्छाओं से मुहँ मोडे हुए हैं वह संन्यास द्वारा कर्मों से छुटकारा दिलाने वाली परम सिद्धि को प्राप्त होता है। सिद्धि को प्राप्त होने पर वह ब्रह्म अर्थात् ज्ञान के सबसे ऊँचे पद को कैसे प्राप्त होता है, अब इसका संक्षेप में उत्तर सुनो।【50】
निर्मल और स्थिर बुद्धि वाला शख्स अपने धैर्य को धैर्य रखने से वश में रक्खे हुए, शब्द आदि इंद्रियों के विषयों से मुंह मोड़े हुए, राग व द्वेष से मुक्त, एकांतवासी, अल्पाहारी, वाणी, शरीर और मन बस में किए हुए, हमेशा ध्यान योग में जुड़ा हुआ, वैराग्यवान्, अहंकार, सख्ती, गर्व, काम, क्रोध व लोभ का त्याग किये हुए, आपा छोड़ें और शांतचित्त होकर ब्रह्मरूप बनने का अधिकारी होता है। ब्रह्मरूप हो जाने पर वह अपने में मग्न रहता हुआ न दुखी होता है न किसी चीज की इच्छा करता है। वह सब के साथ एकसा बर्ताव करता है और उसे मेरी परम शक्ति प्राप्त होती है। भक्ति करके मेरा तत्वज्ञान (मेरे जोहर का ज्ञान ) प्राप्त होता है और उसे मालूम हो जाता है मैं कौन हूँ और क्या हूँ। वह इस तरह मेरा तत्वज्ञान पाकर मुझको प्राप्त होता है।
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क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 2- कल से आगे:-( 8 )- यहाँ पर इस बात का जताना बहुत जरूरी है कि जो लोग सत्तपुरुष राधास्वामी से बेखबर रहे और जिनको सतगुरु भेदी धुर धाम के नहीं मिले, उन्होंने रास्ते में धोखा खाया, यानी जिस मुकाम पर जिसकी रसाई हुई, वह उसी मुकाम के धनी को मालिक और कर्ता समझ कर वहीं ठहर गये और आगे चलने का रास्ता उनका बंद हो गया और इसी सबब से अनेक मत दुनियाँ में जारी हो गये। पर जिनको कि संत सतगुरु भाग से मिले, उनको धुर मुकाम यानि राधास्वामी पद का भेद मिला और वही रास्ते के सब मुकामों को तै करते हुए सच्चे मालिक के चरणो में पहुँचे और जिस खतरे में और लोग, जिनको धुर मुकाम का भेद नहीं मिला, पड कर धोखा खा गये, वे उस खतरे से बच गये। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 16-05-2021-(रविवार) आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:- (1) राधास्वामी दया प्रेम घट आया। बंधन छूटे भर्म गँवाया।।-(भूल भरम धोखा सब भागा। राधास्वामी चरन बढा अनुरागा।।) (सारबचन-शब्द-16-पृ.सं.145,146- डेढगाँव ब्राँच-अधिकतम उपस्थिति-97) (2) गुरु प्यारे को प्यारी ले पहिचान।।टेक।। वोही हैं तेरे साँचे मीता। वही हैं चेतन पुरुष सुजान।।-(दया करें जब राधास्वामी। निज घर अपने जाय बसान।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-53-पृ.सं.46,47) सतसंग के बाद:- (1) राधास्वामी मूल नाम।। (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।। (3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्रांस) विद्यार्थियों के सतसंग में पढे गये पाठ:- (1) राधास्वामी दयाल सुनो मेरी बिनती। जल्दी दरस दिखाओ हो।।-(प्रेमबानी-3-शब्द-5-पृ.सं.266,267) (2) जुड मिल के हंस सारे, दर्शन को गुरु के आये। बँगला अजब बनाया, सोभा कही न जाय।।-(प्रेमबानी-4-गजल-12-पृ.सं.13) (3) साहब इतनी बिनती मोरी। लाग रहे दृढ डोरी।।-(प्रेमबिलास-शब्द-3-पृ.सं.3,4 ) (4) चल देखिये गुरु द्वारे। जहाँ प्रेम समाज लगा री।।-(प्रेमबानी-3-शब्द-4-पृ.सं.248,249) (5) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरुँ या कि मेहनत करूँ।। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलूँ कलाम। न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्जी तेरी के मुवाफिक न हो। रजा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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