**राधास्वामी!! 17-05-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) गुरु दयाल(मेरे दयाल) अब सुधि लेव मेरी। मँझधारा में पडी है नैया डूबन में नहिं देरी।।
-(राधास्वामी दयाल दया के सागर अपनापन न बिसारो। पाप करम मैं सदा से करता जीव दया चित धारो।।)
(प्रेमबिलास-शब्द-121-पृ.सं.177-
डेढगाँव ब्राँच-अधिकतम उपस्थिति-73)
(2) जगत सँग मत भूलो भाई। संग नहिं तुम्हरे कुछ जाई।।-(चरन में नित्त बढाऊँ प्रीत। हिये में धारूँ भक्ति रीत।।) (प्रेमबानी-1-शब्द-23-पृ.सं.34,35)
(3) यथार्थ- प्रकाश-भाग तीसरा-कल से आगे।।
सतसंग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
(प्रे.भा. मेलारामजी-फ्राँस)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**राधास्वामी!! 17-05- 2021
- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन
:-[ सत्संगियों की कठिनाइयाँ]:-
( सत्संगी)-
(1)- इस पुस्तक के पहले भाग में राधास्वामी-मत की शिक्षा का विस्तृत वर्णन पढ़कर और उसकी 99 से लेकर 103 तक की दफाओं में इस शिक्षा का क्रियात्मक अंग देखकर पाठकगण ने अनुमान कर लिया होगा कि सत्संगी अर्थात राधास्वामी मत के अनुयाई कैसे गंभीर -हृदय और स्वतंत्र- विचार होते हैं, वे मनुष्यमात्र को एक पिता के पुत्र मानकर अपना भाई समझते हैं,वे हर धर्म के अनुयाई को अपने भगवान का प्रेमी जानकर उससे हित करते हैं, और हर धार्मिक आचार्य और उसकी शिक्षा का हृदय से आदर करते हैं।
और जोकि उन्हें यह अनुभव से ज्ञात है कि उसे संस्कारों का अभाव रहते हुए कोई उन्हें व्यक्ति न सच्चा प्रमार्थ समझ सकता है, न इसका आदर कर सकता है, वे साधारणतया वाद- विवाद से किनारा खींचे रहते हैं, और यह विचार करके कि परम पिता कुलमालिक को अपने सभी बच्चों की भलाई की चिंता है हर किसी को उसके हाल पर छोड़ते हैं।
हाँ यदि उनसे कोई व्यक्ति परमार्थी सहायता चाहता है तो अत्यंत प्रसन्नतापूर्वक अपनी सेवाएँ पेश करते हैं। परंतु यह सत्संगी की मनोवृति का एक अंश में वर्णन है। अब शेष वर्णन भी सुनिये। क्रमशः.
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ- प्रकाश-भाग तीसरा-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!)
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