Saturday, May 22, 2021

सतसंग DB-RS सुबह रविवार 23/05

 *🙏🙏*परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज- बचन भाग 1- कल से आगे:-



 इस प्रार्थना के उत्तर में मेटरनिटी वार्ड व शादी के नियमों में परिवर्तन करके सत्संगियों को दो बड़ी परेशानियों से बचाने का प्रबंध किया गया है। अब आप इन दोनों बातों को दूसरी तरह से देखें कि क्या वह बेमिसाल हैं या नहीं?  मेरी राय में यह दोनों बातें बेमिसाल है। उदाहरण के तौर पर अस्पताल पर ही विचार कीजिये। अस्पताल में मेटरनिटी वार्ड कायम करने में जो उद्देश्य है और इस कार्यवाही से जो बड़े नतीजे निकलने मंजूर है उस दृष्टिकोण से दूसरी जगह के अस्पतालों में कभी काम नहीं किया जाता। इसलिए यदि अस्पताल के कायम करने के उद्देश्य को सामने रक्खा जाय तो यह अस्पताल बेमिसाल हो जाता है। इसी तरह से विवाह के बारे में जो नियम बनाए गये हैं और विवाह की समस्या को जिस नये ढंग से सुलझाया जा रहा है और आसान बनाया जा रहा है वे बातें दूसरी जगह शायद देखने में आवें। और फिर इस बारे में अभी एक बात आपको नहीं बतलाई गई यदि वह बता दी जाय तो आप स्वीकार कर लेंगे कि दूसरी जगह ये बातें कभी देखने में नहीं आ सकती।

मेरी राय में दोनों बातों में हमारी कार्रवाई बेमिसाल है और यह कार्रवाई न केवल सिस्टम में बल्कि एक दिन संसार में बेमिसाल होगी। न केवल इतना ही बल्कि मैं तो यह कहूँगा कि राधास्वामी संगत बेमिसाल है और दयालबाग बेमिसाल है क्योंकि बाहर के लोगों ने दयालबाग कॉलोनी की तरह उसकी नकल करके कई जगह नई कॉलोनी बसाने की कोशिश की लेकिन वे उसमें सफल न हो सके।

क्रमशः                                         

 🙏🏻राधास्वामी


**राधास्वामी!!( अमृत- बचन)-

कल से आगे-( भूमिका):

- पहले भाग के शुरु में, जैसा की कुदरती तौर पर चाहिए था, परमार्थ के उद्देश्य की निस्बत तहकीकात की गई है और तमाम जानदारों की हर एक कार्यवाई की तह में जो 'सुख की प्राप्ति' व 'दुख की निवृत्ति' की चाह काम कर रही है उसको लेकर परमार्थ का उद्देश्य ऐसी गति की प्राप्ति निश्चित किया गया की जिसके अंदर किसी भी तरह के दु:ख व विक्षेप का लेश मौजूद न हो और भरपूर आनंद की दशा वर्तमान हो।

इसके बाद वैज्ञानिक विधि से सुख व दुःख की तहकीकात करके यह दिखलाया गया कि ऐसी गति की प्राप्ति सिर्फ उस अवस्था में प्रवेश होने पर मुमकिन हो सकती है कि जिसमें शरीर और मन का लेश न रहते हुए केवल चेतन शक्ति के निर्मल जौहर का प्रकाश हो।   

 इस नतीजे पर पहुंचने से कुदरती तौर पर सवाल पैदा होता है कि आया ऐसी परम आनंद की अवस्था मुमकिन भी है और अगर मुमकिन है तो रचना में किसी जगह पर वर्तमान भी है। चुनाँचे प्रकृति की शक्तियों के नियमों के मदद से यह दिखलाया गया कि चेतन शक्ति, जो कि आदि परम शक्ति है, अपना एक भंडार रखती है जिसे कुल मालिक का धाम कहते हैं और जिसके अंदर चेतन शक्ति के निज खवास का भरपूर इजहार रहने से परम शक्ति, परम आनंद और परम सुख का राज्य है और किसी तरह से रद्द व बदल व क्षीणता का दखल नहीं है और यह सिद्ध किया गया है कि इस धाम में दाखिल होने ही पर प्रमार्थ के उद्देश्य की प्राप्ति हो सकती है।

 चेतन शक्ति के भंडार की मौजूदगी साबित होने पर जरूरत यह जानने की होती है कि वह चेतन भंडार रचना में किस जगह पर वाकै है क्योंकि इसके बगैर यह तय नहीं हो सकता कि उसमें रसाई हासिल करने के लिए कौन से यत्न व उपाय करने मुनासिब होंगे।             

 क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र -भाग 2-

 कल से आगे:-( 20)-

 यह रिवाज जो ऊपर लिखा गया, कुल मजहबों में जारी है यानी जो लोग कि मालिक को अवतार स्वरूप मानते हैं या उसके भेद का हासिल होना ऋषीश्वर या आचार्य या पैगंबरों की मार्फत मानते हैं यह दोनों पंथ मनुष्य स्वरूप की पूजा उसी स्वरूप में भाव और प्यार कर रहे हैं।

 इन दोनों समूहो से बाहर कोई नहीं है। सब लोग चाहे किसी मत में होवें, इन्हीं दोनों फिरकों में से हैं- सिवाय नास्तिकों के कि वे मालिक के कायल नहीं हैं, पर वे भी किसी न किसी मनुष्य स्वरूप आचार्य के , जिसने उनकी किताब बनाई और नास्तिक मत जारी किया, कायल है उसको अपने से बड़ा और अपना पेशवा मान कर उसके बचन के मुआफिक कार्रवाई करते हैं।

 क्रमशः                                 

   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**राधास्वामी!! 23-05-2021-(रविवार)

आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                                                

  (1) अगम आरती राधास्वामी गाऊँ। तन मन धन सब भेंट चढाऊँ।।-(मैं चेरी स्वामी तुम्हरे घर की। साफ़ करूँ बधि मायावर की।।)

(सारबचन-शब्द-13-पृ.सं.580,581-

डेढगाँव ब्राँच-अधिकतम उपस्थिति-87)                                                         

(2) गुरु प्यारे करो अब मेहर बनाय।।टेक।। मैं तो अजान लिपट रही जग में। सतसँग बचन न चित ठहराय।।-(राधास्वामी दयाल जीव हितकारी। जस तस देव मेरा काज बनाय।।)

(प्रेमबानी-3-शब्द-59-पृ.सं.51)                                                                                                                                   सतसंग के बाद:-                                              


 (1) राधास्वामी मूल नाम।।                                

  (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                                   

(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।

(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)  

       

विद्यार्थियों का सतसंग:-    

                            

 (1) सतगुरु प्यारी चरन अधारी। खुन २ करती आई हो।।(प्रेमबानी-4-शब्द-16-पृ.सं.102)                                                              

(2) हर सू है आशकारा जाहिर जहूर तेरा। हर दिल में बस रहा है जलवा व नूर तेरा।। (प्रेमबिलास-शब्द-136-पृ.सं.200)                                                        

(3) सुन री सखी मेरे प्यारे राधास्वामी। मोहि प्यार से गोद बिठाय रहे री।।(प्रेमबानी-4-शब्द-4-पृ.सं.32)                                                       

 (4) कौन सके गुन गाये तुम्हारे। कौन सके गुन गाये जी।।(प्रेमबिलास-शब्द-24-पृ.सं.29,30)                                                                      

(5) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरूँ या कि मेहनत करूँ।। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलूँ कलाम। न बन आय मुझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्जी तेरी के मुवाफ़िक़ न हो। रजा के तेरी कुछ मुखालिफ़ जो हो।।                                                       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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