**राधास्वामी!! 13-05-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) चुनर मेरी मैली भई। अब का पै जाऊँ धुलान।।-(राधास्वामी धुबिया भारी। प्रगटे आय जहान।।) (सारबचन-शब्द-6-पृ.सं.550,551, तिमरनी ब्राँच-अधिकतम उपस्थिति-47)
(2) गुरु प्यारे से करना प्रीति जरूर।।टेक।। बिन गुरु भक्ति कुमत नहिं छूटे। बिन सतससंग न मन होय चूर।।-(मन औऋ सुरत चढें तब घट में। राधास्वामी करें तेरा कारज पूर।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-51,पृ.सं.45) सतसंग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसंग अब दिन दिन ।अहा हा हा ओहो हो हो।।
(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज
-बचन भाग 1- कल से आगे:- (86)
- 26 अप्रैल 1942 को अमृतसर की मिल के अहाते में बड़े शामियाने के नीचे सत्संग हुआ। बाद को एक लड़की ने पूछा कि कौन सा कर्म अच्छा है और कौन सा बुरा । यह सत्संगी की लड़की थी और शास्त्री कक्षा में पढ़ती थी। हुजूर मेहताजी महाराज ने फरमाया जिस काम को करने से मालिक से दूरी हो वह बुरा है और जिससे मालिक की नजदीकी हो वह अच्छा है? यह उत्तर आपको परमार्थ के हिसाब से दिया गया है परंतु स्वार्थ के विचार से समय और दशा के अनुसार उसका उत्तर भिन्न हो सकता है। क्योंकि जो कर्म एक समय में अच्छा हो सकता है वही कर्म किसी दूसरे समय यह दशा में बुरा ख्याल किया जा सकता है।।
(87) - 2 जुलाई 1942 को शाम के सत्संग में हुजूर ने फरमाया -आप लोगों ने पिछले एक माह सत्संग की कार्रवाई दिल लगाकर की, क्योंकि इस समय जो मंगलाचरण का पाठ आप लोगों ने किया एक आवाज से किया। मैंने कोशिश की कि मंगलाचरण के समय आप लोगों की आवाज में से किसी की आवाज अलग सुन सकूँ लेकिन मैं कोई आवाज अलग नहीं सुन सका। सब लोगों की आवाजें मिलकर एक आवाज सुनाई देती थी। इसी तरह से यदि हम सब लोग मिलकर एक दिल से हुजूरी चरणों में प्रार्थना करें तो पूरी आशा की जा सकती है कि वे दयाल हम लोगों की प्रार्थना अवश्य सुनेंगे।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*l
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[ भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे
:- ऐसी दशा में जो मूर्ख अपनी आत्मा को, जो वास्तव में न्यारा है, कर्मों का कर्ता देखता है वह सचमुच मतिहीन और अंधा है और जो अहंकार( आपे) के भाव से रहित है और जिसकी बुद्धि निर्लेप है, अगर वह दुनिया भर को कत्ल भी कर दे तो भी वह न कातिल बनता है और न ही उसको कोई बंधन अर्थात् दोष होता है। ज्ञान (जानना), ज्ञेय( मालूम किया जाने वाला) और ज्ञाता( जानने वाला) ये तीन कर्म के लिए प्रेरक है और कारण अर्थात कर्म करने के औजार ( इंद्रियाँ वगैरह), क्रिया और कर्ता के ये तीन कर्म के अवयव है अर्थात् इन तीनों के मिलने से कर्म बनता है। सांख्य के विद्वानों ने ज्ञान ,कर्म कर्ता की, गुणों के फर्क के लिहाज से, तीन तीन किस्में बताई है। अब उनका भी हाल सुनो।
जिस ज्ञान के द्वारा एक अविनाशी पुरुष (परमात्मा) सारी सृष्टि में भूतों के विभक्त होने पर भी अविभक्त नजर आता है वह सात्विकी ज्ञान है।【20】
लेकिन जो ज्ञान सृष्टि को भिन्न-भिन्न भावों में विभक्त समझे वह राजसी ज्ञान है और जो ज्ञान यह निश्चित करें कि सृष्टि की हर एक वस्तु (हिस्सा) संपूर्ण (कुल ) है और जो युक्ति रहित, तत्व-ज्ञान से शून्य और परिमित महदूद है वह तामसी ज्ञान कहलाता है।
वह कर्म जो धर्म समझ कर और बिना किसी लाग और फल की इच्छा के और बिना किसी राग और द्वेष के किया जाता है सात्त्विकी माना जाता है। लेकिन जो कर्म किसी इच्छा से या अहंकारबस (आपा ठान कर ) या चीख-पुकार के साथ किया जाता है वह राजसी माना जाता है और जो कर्म केवल मोह(भ्रम) बस और अधिकार, नतीजे, और दूसरों के नुकसान में तकलीफ का ख्याल छोड़ कर किया जाता है वह तामसी माना जाता है।【25】
क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 2-
कल से आगे:-(7)
- ऐसे प्रमार्थी मन की चाल संसारी मन की चाल से जुदी होगी और इस वास्ते उसकी इंद्रियों की चाल और रीति भी संसारी जीवो की इंद्रियों से जुदी होगी, यानी परमार्थी की इंद्रियाँ चंचल नहीं होवेंगी और संसारी जीव और माया के पदार्थ और संसारी बातों में उनकी तवज्जह बेजरूरत और बगैर किसी काम के नहीं जावेगी।
(8)-जो परमार्थी अभ्यासी इस तरह की सम्हाल अपने मन और इंद्रियों की रक्खेगा, उसको बहुत कम माया और भरम और काल और करम का झटका लगेगा और अपने अंतर में थोड़ा-बहुत रस और आनंद अभ्यास का लेता रहेगा और सतगुरु राधास्वामी दयाल की दया और मेहर के भी परचे उसको अंतर और बाहर बराबर मिलते जावेंगे और उसके सूरत और मन को परमार्थ में दृढ और मजबूत करते जावेंगे क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
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