**राधास्वामी!! 02-05-2020- आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ- (1) निज घट में खोज पिया को सखी। क्यों भरमे जगत उजाडा री।।टेक।। (प्रेमबानी-3-शब्द-3,पृ.सं.242) (2) स्वामी तुम अचरज खेल दिखाया।।टेक।। प्रीति गई सब मीत चीय से बैरु रुप बनाया। हित की बातें लगें बान ज्यों उलटी समझ गहाया।। (प्रेमबिलास-शब्द-107,पृ.सं.158) (3) सतसंग के उपदेश-भाग तीसरा- कल से आगे।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 02-05 -2020 - आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-( 125) सच्चे सतगुरु की बहुत सी पहचानें है। वैसे हर मुतलाशी के लिए सबसे बेहतर पहचान वही है जिससे उसको सतगुरु में विश्वास आवे लेकिन सबसे असली पहचान यह है कि जिस गरज से पूरा करने के लिए मुतलाशी सतगुरु की शरण लेता है वह पूरी हो। इन दो के अलावा और भी बहुत सी पहचाने है। मसलन् सतगुरू के समान किसी साधारण मनुष्य का हृदय कोमल नहीं होता। उनसे प्रीति जोड़ने पर मनुष्य के हृदय में आप से आप मालिक के लिए गहरा प्रेम जाग जाता है। उनकी सोहबत में रहने से मनुष्य निश्चिंत हो जाता है क्योंकि सतगुरु खुद चिंता से रहित होते हैं । इन बातों के अलावा जीवो के साथ सतगुरु के बर्ताव में एक खास निरालापन रहता है। वह जीवो के साथ बेगरज प्रेम करते हैं । वह अपना काम किसी मनुष्य के भरोसे नहीं करते। वह बुद्धिज्ञान के बजाय अनुभव ज्ञान से काम लेते हैं। वह किसी की अमीरी गरीबी व बडाई छुटाई का ख्याल दिल में नहीं लाते। जिस शख्स के दिल में सच्चे मालिक के लिए प्रेम व श्रद्धा है वह उसकी इज्जत करते हैं। उनके स्वरूप का अनुमान मुश्किल से होता है यानी जब तक किसी का हृदय शुद्ध न हो वह उनके स्वरूप का अनुमान नहीं कर सकता। वह किसी से वैर विरोध नहीं करते और हर किसी का भला चाहते है। वह हमेशा अपने मन व इंद्रियों पर काबू रखते हैं। वह शब्द अभ्यास का उपदेश करते हैं और खुद शब्द में रत रहते हैं। उनके पास परमार्थ के मुतअल्लिक़ हर प्रश्न का मुनासिब उत्तर हमेशा तैयार रहता है और जैसा वह उत्तर देते हैं दूसरा कोई नहीं दे सकता । 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 सत्संग के उपदेश भाग तीसरा।।**
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