एक व्यंग्य ......
पुरस्कृत होने का गुरुर ----
एक तथाकथित प्रसिद्ध अखबार मेँ कुछ लेख / लेखिकाओं को पुरस्कृत करने के लिए आवेदन पत्र छपा .....सभी ने पढ़ा देखा ...जिसकी आँखों से वो वँचित रहा गया उसे और लोगों ने दूरभाष पर सूचित किया ...कई तरह के मानक थे ...पुरस्कारों के नाम भी बहुत बड़े बड़े थे ...अतः कोई भी इसके मोहपाश मेँ आसानी से फंस जाए ....खैर हुआ भी वही ...पुरुषों से ज्यादा आवेदन महिलाओं के आये ...इसमें कोई दो राय नहीं की महिलाएं पुरस्कारों से ज्यादा प्रभावित होती हैं ...पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की इन्हें पाने की लालसा मेँ और उसके फलस्वरूप उनकी ख़ुशी की सीमा मेँ दुगुने से ज्यादा का अंतर होता है ...इसके पीछे कई मनोविज्ञान काम करते हैं ...जिसमें से एक मनोविज्ञान सर्वोपरि होता है ...वो होता है महिलाओं मेँ खुद को साबित करने की एक होड़ सी मच गयी है इनदिनों ...जिसके लिए अनेकों जोड़ तोड़ हो रहे हैं ...घर के घर परिवार के परिवार दावं पर लगे हैं ....इसमें स्वार्थी पुरुष जी भरकर अपनी रोटियाँ सेंकने मेँ लगे हैं ...वो भी हर सम्भव प्रयास करके किसी न किसी उच्च महत्ता की लालच मेँ पड़ी महिला को अपने साँचे मेँ ढाल ही लेते हैं ....तो हुआ क्या तरह तरह के महत्ता पाने की लालसा वाले साहित्यकारों ने अपने और आवेदन पत्र के मानकों का ध्यान रखते हुए आवेदन किये ....फिर वो समय भी आ गया जिसके लिए ये कवायद की गयी थी कुछ चुने हुए साहित्यकारों को बुलावा भेजा गया पर किसी भी प्रकार का कोई टिकट आदि देय नहीं था ऐसा आवेदन पत्र मेँ ही जिक्र हो गया था .....फिर क्या....सभी ने अपने अपने रिज़र्वेशन करवाए और वहाँ पहुँचकर अपने अपने लिए होटलों मेँ कमरे बुक करवाए ....फिर निश्चित दिन पर सज धज कर सभी खुद को सम्मानित कराने के लिए आयोजन स्थल पर पहुँचे ...सभी गर्व से भरे जा रहे थे ...महिलाओं की संख्या यहाँ भी ज्यादा ही थी ....अधेड़ महिलाओं ने ज़ब कई कम उम्र की महिलाओं को भी पुरस्कार प्राप्त करने वाली पाती मेँ बैठे देखा तो उनका गर्व कुछ घटा ...और एक महिला पूछ ही बैठी , " क्या आपने भी 12 / 15 किताबें लिख ली ....बड़ी कम उम्र मेँ आपने ये उपलब्धि प्राप्त कर लिया ....हम लोगों को देखो उम्र लग गयी लिखते लिखते ,"
वो कम उम्र की लड़की बोली , " जी नहीं तो अभी तो मैंने कोई किताब नहीं लिखी पर अगले वर्ष तक जरूर लिख लुंगी ....एक किताब पर मेहनत कर रही हूँ ...वो देखिये मंच पर जो पांच लोग बैठे हैं उनमे किनारे वाले और बीच वाले ही मुझे लिखना सीखा रहे हैं ,"
वो महिला , " लिखना सीखा रहे हैं ...फिर ये पुरस्कार आपको किस वजह से दिया जा रहा हैं ,"
वो लड़की बोली , " मुझे क्या पता ...मुझे पुरस्कृत होने की सुचना मिली तो मै चली आयी .....मुझे पुरस्कार लेने से मतलब ....कुछ तो योग्यता देखी ही होंगी उन लोगों ने ...देखिये ...मुझे कोई लालच नहीं इन सबका ....और फिर आप भी तो लेने आयी ही हैं यही पुरस्कार ,"
वो महिला बिफ़र पड़ी ...," लेने आये हैं का क्या मतलब ....क्या खैरात मेँ दे रहे हैं ...एक अच्छी लेखिका हूँ बीस किताबें लिख चुकी हूँ ....फिर इनके आवेदन मेँ भी लिखा था दस से अधिक किताबें लिखने वाले को ही दिया जाएगा ....फिर ये भी लिखा था चुनाव निष्पक्ष होगा ...किसी प्रकार का कोई दबाब न बनाये और न ही किसी से कहलाये ....फिर यहाँ तक का टिकट करवाया होटल मेँ कमरा लिया ...पता भी है कितना खर्च हो गया ...और यहाँ ये हाल है ,"
वो लड़की बोली ," क्या कहा आपने कोई आवेदन भी निकला था क्या ....हम लोगों ने तो कोई भी आवेदन नहीं भरा क्यों मीनू तुमने भरा था क्या .., "
उस लड़की ने अपने बगल मेँ बैठी लड़की से पुछा !
मीनू बोली , " नहीं दी ,"
अब वो महिला आपे मेँ नहीं थी....
वहाँ से तमतमाते हुए उठी और आयोजक जो थोड़ी दूर पर ही मिल गया के पास पहुँच गयी और बोली ," ये क्या तमाशा बना रखा है आप लोगों ने इतने बड़े बड़े नामों के पुरस्कार किसी को भी दे देंगे ...यही करना था तो आवेदन पत्र मेँ क्या जरूरत थी बढ़ा चढ़ाकर लिखने की ,"
वो आयोजक बोला , " आप कृपया शांत हो जाईये और सच मेँ हम लोग बेहद शर्मिंदा हैं हो सके तो हमें क्षमा कर दें उन तीन लड़कियों का नाम तो अध्यक्ष महोदय की जिद के कारण अंतिम समय मेँ सम्मिलित किया गया है ....हम सच मेँ मजबूर थे ...उन्होंने उन नामों की शर्त पर ही अध्यक्षता स्वीकार की है , "
वो महिला बोली , " अच्छा ....ये अध्यक्ष महोदय ने अच्छा नहीं किया ....इन लड़कियों का भविष्य ही खराब कर दिया इस तरह तो ....इनका साहित्यिक ग़र्भपात ही कर दिया ..हे ईश्वर साहित्य को बचाओ ऐसे मठाधीशों से ....आईन्दा से मै किसी भी पुरस्कार के चक्कर मेँ नहीं पडूँगी ....,"
ऐसा कहते हुए महिला अपने सम्मान की बारी आने से पहले ही वहाँ से चली गयी !!!
सीमा "मधुरिमा"
लखनऊ !!!
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