Sunday, March 7, 2021

काशी प्रतिमान वाले सुरेश्वर त्रिपाठी जी के लिए / अनामी शरण बबल

: नमस्कारl

सृजन मूल्यांकन के सुरेश्वर त्रिपाठी अंक पर आज लोकार्पण और विचार गोष्ठी का आयोजन हो रहा है  और मैं उपस्थित नहीं हूँ. कुछ ऐसा संयोग रहा की पत्नी का ऑपरेशन पांच मार्च को हुआ है और कल देर  शाम को घर लाया गया. उनकी स्थिति और घर में केवल बेटी के भरोसे छोड़ा नहीं जा सकता था. इस कारण माफ करेँगे 🙏

 सृजन का कोई भी आयोजन मेरा अपना पारिवारिक कार्यक्रम सा होता है और उसमें ना होने की पीड़ा को समझा जा सकता है.

सुरेश्वर जी पर अंक आपके सामने है और यहां पर कुछ बातें बताना चाहूंगा की सुरेश्वर जी से मेरा नाता विशुद्ध लेखक पत्रकार पाठक वाला है. सुरेश्वर  जी का नाम आते ही मेरे मन में काशी प्रतिमान की छवि प्रकट होती है. इसके 3-4 अंक कोई 20-21 साल पहले काशी प्रतिमान के जरिये हुआ. और इस परिचय के सूत्रधार बने आदरणीय प्रकाश मनु जी. उनसे ही काशी प्रतिमान और सुरेश्वर जी के दबंग व्यक्तित्व के बारे में सुना था. काशी प्रतिमान के सौजन्य मनु जी वो सारे अंक आज भी मेरी पुस्तकालय की शोभा है.

लंबे समय के बाद करीब 15 साल की गुमनामी से सृजन को बाहर  निकाला और मनुजी पर अंक लाया गया. उसी  दौरान एक बार फिर मन में यादों में सो गये सुरेश्वर त्रिपाठी जी जीवित हो गये. फिर मनुजी ने ही उनके बारे में uptodate जानकारी दी और  यह भी बताया की सुरेश्वर जी अब फरीदाबाद े ही रहते है.

यह सूचना मेरे लिए नयी और अनोखी थी  मेरे मन में उनसे मिलने की इच्छा जगी मगर मुलाक़ात का योग संयोग सृजन मूल्यांकन के मनु जी पर केंद्रित अंक के लोकार्पण समारोह में ही संभव हो पाया l

मनुजी के घर पर आयोजित समारोह में लम्बे चौड़े विराट व्यक्तित्व के एक सज्जन का कैमरा लेकर फोटो खींचते देखा और वक्ताओ में ज़ब सुरेश्वर जी की पारी आने पर वही  विराट कद काठी  के छायाकार प्रकट हो गये. तब जाना की ये तो सुरेश्वर जी है. मेरी उत्सुकता उनसे मिलने की हुई और तब जाकर उनसे मेरी पहली मुलाक़ात हुई.

वाकई गुरु मजा आ गया करीब तीन चार मुलाक़ात में ही जाना की ऊपर से दबंग लगने वाले सुरेश्वर जी अंदर से कितने भावुक सरल संवेदन शील सहयोगी और हर आदमी के लिए खड़ा हो जाने वाले कितने दुर्लभ आदमी हैं. साहित्य के मथाधिशो के खिलाफ आवाज़ उठाने और सच को सामने लाने वाले सुरेश्वर जी को इसका आजीवन नुकसान भी उठाना पड़ा. इसके बावजूद इनके दबंग व्यक्तित्व के आभा मंडल  पर कोई असर  नहीं पड़ा. इनके तेवर और सच के प्रति दृढ़ता में कोई कमी नहीं आयी. शायद यही तेज इनके व्यक्तित्व की गरिमा का सबसे सुंदर पक्ष हैं. 

सुरेश्वर जी पर अंक केंद्रित करना और क्या मैटर दिया जाए या ना दिया जाए इस पर विचार करना भी कठिन कार्य था. इनपर लिखने वालों की तादाद भी इतनी हो गयी की बड़ी सख़्ती के साथ केवल संस्मरण लिखने की बजाय इनके उन रचनाओं को ही जगह देना ज्यादा ठीक लगा जिसको लेकर विवाद का आकार बढ़ता चला गया.  कुछ विवाद तो उनके साथ आजीवन जुड़ गया जिसका खामियाजा भी उनको भुगतना पड़ा. बेशक नामवर सिंह शिव प्रसाद सिंह और राजेंद्र यादव आदि के साथ का विवाद भी  साहित्यिक गरिमा को खंडित करता हैं.  मगर उन विवादों को हवा देने की बजाय  सुरेश्वरजी के साहित्यिक रचनात्मक  अवदान को सामने लाना जरूरी लगा. इनके व्यक्तित्व की कहीं अनकही बातों प्रसंगो को मैंने बातचीत में लाने की कोशिश की हैं. शायद बातचीत में सुरेश्वर जी के व्यक्तित्व का दूसरा ही पहलू सामने आता हैं सुरेश्वर जी का साक्षात्कार लंबी हो गयी हैं मगर शायद रोचक और दुर्लभ बन गया हैं जिसे सृजन के 60-65 पन्ने में जगह दिया गया हैं. 

अंक कैसा बन पड़ा हैं या इसमें क्या कमी रह गयी या क्या खास बन पड़ा हैं इसका फैसला मेरा नहीं आप पाठकों का हैं. जिसकी टिप्पणीनियो से ही सृजन मूल्यांकन के इस अंक के आकार प्रकार के कद का निर्धारण किया जायगा. हा सुरेश्वर जी का विख्यार आलोचक राम विलास शर्मा के प्रगाढ़  संबंधों को लेकर छायांकन और आलेखों को जगह नहीं दी गयी. सम्भावना हैं की इसको लेकर कोई खास आयोजन.किसी अंक के साथ अलग से पुस्तिका की तरह प्रस्तुत किया जा सकता है. मगर भविष्य की बातों के लिए फिर कोई और कुछ  मौके आएंगे जिसमें सुरेश्वर जी पर चर्चा करने का अवसर मिलता रहेगा.

सुरेश्वर जी के बारे में ज़ब भी जितना भी सुना और देखा तो सच में उनके प्रति मोहित सा होता रहा. मेरे मन में सृजन किसीक अंकनको केंद्रित करने की ललक बढ़ गयी. इसके लिए ज़ब मनु जी से सलाह लिया तो उन्होंने मेरे प्रस्ताव की  सराहना की. तब जाकर सुरेश्वर जी इस बाबत बताया तो उन्होंने ख़ुशी के साथ साथ आशंका भी जाहिर की. उन्होंने पत्रिका को लेकर डर जाहिर की. इन हालातो को जानकर मेरे मन में सुरेश्वर जी पर अंक केंद्रित करने की इच्छा  बलवती होती रही और उसी का फल हैं की यह अंक आप सबो के सामने हैं.

सुरेश्वर जी महज लेखक पत्रकार संपादक ही नहीं हैं. यायावरी  घूमककड़ी  और छायांकन के प्रति इनकी दीवानगी कुछ हद तक पागलपन की सीमा तक लगाव  को जानना रोमांचित तो करता हैं मगर इनके जुनून को महसूसना दूर से भला लगता हैं मगर इन हालातो से दो चार होना सरल नहीं हैं. साहित्य के साथ साथ कठिनाइयों दिक़्क़तों से दो चार होना आसान नहीं हैं और इस हालत से वे तीन दशक से जूझ रहे हैं. इसके बावजूद उनके साहस हिम्मत और दृढ़ता को बरकरार रखना लगभग नामुमकिन सा होता हैं, मगर सुरेश्वर जी का यही साहस इनको दुर्लभ बनाता हैं.

 स्पन्दित होता रहता हैं. सही मायने मे वो आज भी काशी के नायक हैं और काशी प्रतिमान के संपादक के साथ साथ काशी के भी प्रतिमान हैं. शान हैं और सदैव काशी की  शान रहेंगे.  ऐसे नायक को सलाम. सृजन मूल्यांकन का सलाम.

 सृजन मूल्यांकन का सफर हमेशा बाधित होता रहा हैं मगर अब लग रहा हैं की साल में दो तीन अंको को सामने लाने  अवसर आता रहेगा. सृजन का लगातार सफर भले नाकरहा हो मगर लोगों पाठकों के मन में सृजन की याद बनी हुई हैं. शायद यहिबिस्की खासियत रही हैं. सुरेशवरवजी जैसे उपेक्षित नायक पर अंक लाना सृजन का सौभाग्य हैं. सृजन मूल्यांकन का सौभाग्य रहा हैं कि  इसके नायको में कभी सुरेश्वर जी प्रकाश मनु जी प्रदीप रौशन या शैलेश मटियानी जी जैसे रचनाकारों  को नायक बनाकर अंक केंद्रित करने का अवसर मिला.  मैं सुरेश्वर जी के व्यक्तित्व को सलाम करता हूँ. भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि उनके  भीतर कि दृढ़ता साहस जीवंतता बरकरार रहे  ताकि वे हमेशा दूसरों के लिए प्रेरक बने रहे. लोग उनसे प्रेरित होकर सहयोग समर्पण सदभावना कि लौ को जीवित रख सके.  सच में काशी के मोहक प्रतिमान कि तरह मान्य सुरेश्वर जी का काशी के साथ अटूट रिश्ता हैं. काशी से दूर भले ही वे आज फरीदाबाद में होक़र या रहकर भी उनके भीतर आज भी काशी जीवित  हैं. काशी उनमे स्पडित

 आज का आयोजन नहीं हो रहा हैं पर मेरा आलेख आप पढ़े आधा लिख गया तो त्रिपाठी जी का फोन आया फिर भी पूरा लिख गया. आप देखें

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