Wednesday, March 3, 2021

सतसंग RS शाम 03/03

 राधास्वामी!! 03-03-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:- 

                                 

 (1) सुरतिया सोच करतः कस जाऊँ भौ के पार।। यह मन चंचल बूझ न लावे। जग में भरमे जुगत बिसार।।-(गुरु दयाल सब काज सँवारज। बिरथा चिन्ता देउँ बिसार।।) (प्रेमबिलास-शब्द-14-पृ.सं.120,121)                                                         

(2) राधास्वामी दयाल सरन की महिमा। सतसंगी मिल गाय रहे री(आज)।।टेक।। चरन कमल में सीस नवाकर। भक्ति दान सब पाय रहे री।।-(दया मेहर की दृष्टि भर भर। चहुँ दिसी आप घुमार रहे री।। ) (प्रेमबिलास-शब्द-14-पृ.सं.17,18)                                                     

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                              

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

              

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे :-(173 )-


संतमत बतलाता है कि प्रकृति भी न्यून चेतन है, और जैसे धनात्मक और ऋणात्मक ध्रुवों के मिलने से विद्युत- शक्ति अविर्भूत होती है ऐसे ही विशेष और न्यून चेतन के द्वारा मालिक परम शक्ति स्थित है।।                                                                

  ( 174)- प्रश्न १२- जो लोग ब्राह्म को आदि देवता मानते हैं वे वेदों के विभाग के संबंध में यही कारण बतलाते हैं।                         

(175)-प्रश्न-१३- रचना के तीन बड़े विभागों के संबंध में सबसे बड़ा प्रमाण स्वयं मनुष्य की सत्ता ही है। और आपने " पिण्डे सो ब्रह्मांडे" सुना ही होगा। मानुषीय सत्ता में प्रत्यक्षतःतीन विभाग है। पहला हाड मास चाम का शरीर,  दूसरा मन और तीसरा सुरत या आत्मा।

 इसी प्रकार रचना में तीन बड़े विभाग हैं। पहला मलिनमायादेश, दूसरा शुद्धमायादेश और तीसरा निर्मलचेतनदेश। और यदि आपको यह ध्यान रहेगा कि जैसे दीपक की लौ एक ही वस्तु होते हुए भी उसके अंदर प्रकाश और चमक के दर्जे रहते हैं- अर्थात एक स्थान पर श्वेत प्रकाश है, दूसरे पर लाल और तीसरे पर नारंजी और चौथे पर काला धुआँ।

 ऐसे ही कुलमालिक के चेतन जौहर में भी अनेक दर्जे हैं और सृष्टि-क्रम चालू होने पर इन दर्जो में विभिन्न लोकों का रूप धारण कल लेने का स्वाभाविक गुण है। इससे आपको अपने प्रश्न के शेष अंश का उत्तर भी स्वयं ही मिल जाएगा।

 सुरतें या आत्माएँ मालिक की अंश है। ये अनादि हैं। पर हाँ, जैसे प्रत्येक शक्ति के गुप्तरुप और प्रकट दो रूप होते हैं ऐसे ही रचना के पूर्व आत्माएँ गुप्तरुप थी और रचना की क्रिया जारी होकर विभिन्न लोक बनने पर वहाँ निवास के योग्य आत्माएँ प्रकट  रूप से उनमें स्थित हो गईं।।           

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻   

                                           

यथार्थ प्रकार भाग दूसरा

परम गुरु जी साहब जी महाराज!


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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