: परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश- भाग -3-(18)
अगर सत्संगी बढ़ कर सेवा करने का मौका हासिल करने की गरज से दुनिया में बड़ा दर्जा मिलने के लिए प्रार्थना व कोशिश करें तो निहायत जायज व दुरुस्त है। लेकिन अगर इज्जत ,दौलत व हुकूमत का रस लेने की गरज से प्रार्थना व कोशिश करें तो नाजायज व नामुनासिब है। जिस शख्स को सच्चे मालिक के दर्शन, सच्ची मुक्ती, और ऊँची से ऊँची रूहानी गति की प्राप्ति के लिए रास्ता मिल गया और जिसने इन बातों को अपनी जिंदगी का उद्देश्य करार दिया उसके लिए दुनिया का रुतबा, दौलत व हुकूमत क्या हैसियत रखते हैं ? चूँकि हुजूर राधास्वामी दयाल ने स्वार्थ व प्रमार्थ दोनों के कमाने के लिए उपदेश फरमाया है इसलिए सत्संग में स्वार्थ के लिए गुँजाइश निकल आई है वर्ना स्वार्थ की क्या हकीकत कि सच्चे परमार्रथ से आँख मिला सके। इसलिए याद रखना चाहिए कि हरचंद सतसंगी को स्वार्थ कमाने की इजाजत है लेकिन हर हालत में मुख्यता परमार्रथ ही की रहेगी।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
[परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज के अमृत बचन 】
मनुष्य को मालिक की सत्ता पर पूर्णतः विस्वास नही है,.नही तो वह देखे कि किस तरह बडे से बडा और कठिन से कठिन काम थोडी देर में पूरा हो जाता है और पेचीदगी का बडे से बडा पहाड रूई के गाले की तरह हवा में उड जाता है। मालिक की दया व मेहर के बजाय मनुष्य को विश्वास है- अपनी बुद्धि पर, अपनी सम्पत्ति पर और अपनी चतुरता पर। यद्दपि उसे प्रतिदिन अनुभव होते है कि उसकी बुद्धि व सम्पत्ति ने धोखा दिया है परंतु फिर भी वह उनके भ्रमजाल में फँस जाता है। सतसंगी को याद रखना चाहिए कि मालिक की दया व मेहर के सामने कोई भी कठिनाई हल होने से नही रह सकती। यह एक नियम है जिसका पालन होते ही सब काम अपने आप ठीक हो जाते है।
(प्रेमप्रचारक)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
No comments:
Post a Comment