मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत... 🙏🙏
(धुन : मैया मोरी मै नहीं माखन खायो)
राजकिशोर सत्संगी
मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत
भोर से पहले तुम खेतन में, कर्म हमरे कटवावत
हम पड़े अलसाये बिस्तर में, समय से ना उठ पावत
तुम सुनवाओ बीन-बांसुरी, कभी सुने तो कभी ना सुन पावत
मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत...
चार-पहर, बारंबार तुम हमें समझावत
सत्संग-सेवा से हमें रहत जुड़ावत
दया-मेहर हम पे, हर पहर बरसावत
फिर भी, हम तोहार एको बात न मानत
मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत...
चार-पहर हम पेट खातिर भटको, थको सांझ घर आवत
दिन भर के घर के झंझावात, बैठा के सबके हम सुलझावत
चौरासी से छूटन के तरीका, तुम हमें हरदम बतावत
पर इ माया-जाल हमें, जाने कहां-कहां भरमावत
मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत...
सुन के विपदा आपन पे, तुरंते खेते से ही जावे के मन बनावत
विचारत ना आपन सेहत, सांझ तक राजाबरारी पहुंच जावत
रास्ता टूटल-फूटल, भोपाल से हमें सूरदास के भजन सुनवावत
हैं हम चकराए, मालिक काहे भजन-विनती दोऊ संगे गवावत
मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत...
कोशिश करें बहुत, तोहरे कहे पे ना चल पावत
क्या करें कैसे करें, हमका हमरे पे शरम आवत
काहे ना बुलावत हमके, सामने काहे ना बैठावत
इहे सब सोच-सोच के, अंखिया हमार बार-बार भर आवत
मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत...
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(राज किशोर सत्संगी)
30.08.2021
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