आज 30082021 क़ो परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर स्वामी जी महाराज के पावन भंडारे के समय पढा गया बचन
55. यह मन बतौर मस्त हाथी के है, जिधर चाहता है उधर चला जाता है और जीव को संग लिये फिरता है। जंगल के हाथी के लिये तो हाथीवान दुरुस्त करने को ज़रूर है और इस मनरूपी हाथी को सतगुरु ज़रूर हैं। जब तक सतगुरु का आँकुस इस पर न होगा, तब तक इसकी मस्ती नहीं उतरेगी। इस जीव को जो परम पद की चाह है तो सतगुरु करना ज़रूर है, बिना सतगुरु के कभी परम पद हासिल न होगा। इस बचन को सच्चा मानो, नहीं तो चौरासी जाओगे।
56. संत सतगुरु का मत सर्गुन और निर्गुन दोनों से न्यारा है और जो रचना सत्तलोक में है, वह भी सत्य और उसका रचने वाला सत्तपुरुष भी सत्य है।
57. जो संत या फ़क़ीर हैं, वह ज़ाते ख़ुदा यानी स्वरूप मालिक के हैं। जो उनकी ख़िदमत करेगा और उनकी मुहब्बत और प्रतीति करेगा, वह भी ज़ाते ख़ुदा हो जावेगा।
राधास्वामी
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