*विचार...*✍️
*एक राजमहल के द्वार पर एक वृद्ध भिखारी आया। द्वारपाल से उसने कहा- ‘भीतर जाकर राजा से कहो कि तुम्हारा तुमसे भाई मिलने आया है।’*
*द्वारपाल ने समझा कि शायद कोई दूर के रिश्ते में राजा का भाई हो। सूचना मिलने पर राजा ने भिखारी को भीतर बुलाकर अपने पास बैठा लिया।*
*भिखारी ने राजा से पूछा- ‘कहिए बड़े भाई! आपके क्या हालचाल हैं ?... राजा ने मुस्कराकर कहा- ‘मैं तो आनंद में हूं, पर आप कैसे हैं ?...*
*भिखारी बोला- ‘मैं जरा संकट में हूं। जिस महल में रहता हूं, वह पुराना और जर्जर हो गया है। कभी भी टूटकर गिर सकता है। मेरे बत्तीस नौकर थे, वे भी एक एक कर मुझे छोडकर चले गए। पांचों रानियां भी वृद्ध हो गईं हैं... क्या करुं समझ में नहीं आता...*🤔
*यह सुनकर राजा ने भिखारी को दो स्वर्ण मुद्राएं देने का आदेश दिया। भिखारी ने उसे कम बताए... तो राजा ने कहा- ‘इस बार राज्य में सूखा पड़ा है इससे अधिक नहीं दे सकते।*
*तब भिखारी बोला- ‘मेरे साथ सात समंदर पार चलिए। वहां सोने की खदानें हैं। मेरे पैर पड़ते ही समुद्र सूख जाएगा। मेरे पैरों की शक्ति तो आप देख ही चुके हैं।’ अब राजा ने भिखारी को एक हजार स्वर्ण मुद्रायें देने का आदेश दिया...*
*भिखारी के जाने के बाद राजा ने बोला- ‘भिखारी बहुत बुद्धिमान था। भाग्य के दो पहलू होते हैं... राजा व रंक। इस नाते उसने मुझे भाई कहा। आज जो राजा है वो रंक भी हो सकता है... और रंक राजा...*
*जर्जर महल से आशय उसके वृद्ध शरीर से था... शरीर तो जर्जर होगा ही एक दिन, तो अहंकार क्यों करें...*
*उसके बत्तीस नौकर यानी बत्तीस दांत और पांच रानियां यानी पांच पंचेंद्रीय को बताते हैं...*
*समुद्र के बहाने उसने मुझे उलाहना दिया कि राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा खजाना सूख गया, इसलिए मैं उसे दो स्वर्ण मुद्रायें दे रहा हूं। उसकी बुद्धिमानी देखकर मैंने उसे हजार स्वर्ण मुद्राएं दिए और कल मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्त करूंगा।’*
👉 *कई बार अति सामान्य लगने वाले लोग भीतर से बहुत गहरे होते हैं, इसलिए व्यक्ति की परख उसके बाह्य रहन-सहन से नहीं बल्कि आचरण से करनी चाहिए...पर लोग धन सम्पत्ति, पद, प्रतिष्ठा को देखकर ही व्यवहार करते हैं, जो गलत भी हो सकता है...*
*!! जय श्रीराधे !!*🙏🚩
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