गुरु नानक साहिब जब काबा में जो मक्का शरीफ़ में है, क़ाज़ी रूकनुद्दीन से मिले, तो उसने पूछा कि ख़ुदा का महल कैसा है ? उसकी कितनी खिड़किया और दरवाज़े हैं ? कितने बुर्ज हैं ? कितने कँगूरे हैं ?
अब ये कोई मामूली सवाल नहीं थे, गहरे विचार के योग्य थे । गुरु साहिब ने जवाब दिया कि इस शरीर (जिस्म) के
बारह बुर्ज हैं ( तीन दाहिनी बाँह के जोड़, तीन बाईं बाँह के जोड़ और दोनों टाँगों के तीन-तीन जोड़, इस प्रकार कुल बारह हुए ),
नौ दरवाज़े ( दो कान, दो आँखें, दो नासिका के सुराख़, एक मुँह और दो सुराख़ नीचे के ),
बावन कँगूरे हैं ( हाथ-पैरों के बीस नाख़ून और बत्तीस दाँत ),
दोनों आँखे दो खिड़किया हैं ।
महल बहुत अजीब और बे-मिसाल है ।
गुरु साहिब कहते हैं :
" ऊपर खास महल पर देवै बांग खुदाए ।"*
( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 214-15 )
" अर्थात : आपके शरीर (जिस्म) के अन्दर ख़ुदा बाँग दे रहा है । यह शरीर ही ख़ुदा की मसजिद है । हम बाहर माथे रगड़ते हैं । क्या कभी किसी को वह बाहर मिला है
किसी को नहीं । बाँग (शब्द धुन) तो हरएक के अंदर हो रही है, लेकिन लोग सोये हुए हैं ।
" सुते बांग न सुन सकन रिहा खुदाइ जगाइ ।"*
( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 214-215 )
" वह मालिक तो जगाना चाहता है लेकिन कोई जागता ही नहीं ।"
" सुती पई निभाग बस सुने न बांगां कोइ ।"*
( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 215 )
" वे लोग बदक़िस्मत है जो रात को जागकर उस बाँग को नहीं सुनते ।"
" जो जागे सेइ सुने सांईं संदी सोइ ।"*
( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 215 )
" जो जागता है, उसकी सुरत शब्द में लगती है, वही मालिक की आवाज़ यानी शब्द को सुनता है ।"
पुस्तक : " परमार्थी साखियाँ "
( महाराज सावन सिंह जी )
( साइंस आँफ़ द सोल रिसर्च सेंटर )
" राधास्वामी सत्संग ब्यास "
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