🌺भगवान से रिश्ता_🌺
प्रस्तुति : कृष्ण मेहता
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*_एक बार मथुरा के निकट एक गाँव में एक छोटी लड़की रहती थी। वृन्दावन के निकट होने के कारण वहां से बहुत लोग ठाकुर जी के दर्शन को जाते थे।_*
*_जब वो छोटी बच्ची 5 साल की हुई तो उसके घर वाले बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए जा रहे थे। उस समय वाहन बहुत कम थे। उनको दर्शन को जाते देख उस छोटी लड़की ने कहा “पिताजी मुझे भी अपने साथ ठाकुर जी के दर्शन के लिए ले चलो” पिताजी ने कहा बेटा अभी आप छोटे हो इतना चल नहीं पाओगे थोडा बड़े हो जाओ तब तुम्हें साथ में ले चलेंगे।_*
*_कुछ समय बीता जब वो 7 साल की हुई तो फिर घरवालों का किसी कारणवश वृन्दावन जाना हुआ। फिर उस बच्ची ने कहा “पिताजी अब मुझे भी साथ ले चलो ठाकुर जी के दर्शन के लिए।” लेकिन किसी कारणवश वो उसको न ले जा सके। बच्ची के मन में ठाकुर जी के प्रति बहुत प्रगाढ़ प्रेम था।_*
*_वह बस उनका मन से चिंतन करती रहती थी और दुखी भी होती थी कि आज तक ठाकुर जी के दर्शन को न जा सकी ।_*
*_गाँव में उसके सभी सहपाठी ठाकुर जी के दर्शन कर चुके थे। जब वो सब ठाकुर जी के मंदिर और उनके रूप का वर्णन करते तो इस बच्ची के मन में दर्शन की ललक और भी बढ़ जाती।_*
*_समय अपने पंख लगा के बढ़ता गया। कही अवसर मिले जाने के पर शायद उसके भाग्य में ठाकुर जी के दर्शन नहीं लिखे थे। जब वो 17 साल की हुई तो उसके पिताजी कोे उसके विवाह की चिंता हो गयी।_*
*_उसका विवाह तय हो गया संयोग कहो या उसका ठाकुर जी के प्रति प्रेम जिसके कारण उसका विवाह वृन्दावन के सबसे पास वाले गाँव में हो गया।_*
*_वह लड़की बहुत प्रसन्न थी कि अब तो उसको भी ठाकुर जी के दर्शन होंगे। जब विवाह संपन्न हुआ तो वह अपने ससुराल गयी। फिर रस्म निभाने के लिए वापस अपने घर आई।_*
*_एक दो दिन बाद वो और उसके पति जब वापस अपने घर जा रहे थे तो बीच में यमुना नदी के पास उसका पति बोला कि_*
*_“तुम कुछ देर इधर ही बैठो मैं यमुना में स्नान करके आता हूँ।”_*
*_उस लड़की का चिंतन अब ठाकुरजी की तरफ चला गया और सोचने लगी की कब ठाकुर जी के दर्शन होंगे।_*
*_उस लड़की ने लंबा घूँघट निकाल रखा था, ससुराल के पास होने के कारण और वही बैठ गई। फिर वो मन ही मन विचार करने लगी ‘कि देखो!_*
*_ठाकुरजी की कितनी कृपा है। मैं उन्हें बचपन से याद करती हूं और दर्शन के लिए लालायित थी, उनकी कृपा से मेरा विवाह श्रीधाम वृंदावन के नजदीक ही हुआ।_*
*_पर मैं इतने सालों से ठाकुरजी को मानती हूँ पर अब तक उनसे कोई भी रिश्ता नहीं जोड़ा ?” फिर सोचने लगी “ठाकुरजी की उम्र क्या हो सकती है ?_*
*_“मेरे हिसाब से लगभग 17 वर्ष के ही होंगे, मेरे पति 21 वर्ष के है, उनसे थोड़े छोटे होंगे, इसलिए वो मेरे पति के छोटे भाई की तरह हुए तो मेरे देवर की तरह, लो आज से ठाकुरजी मेरे देवर होंगे।”_*
*_अब तो ठाकुरजी से नया सम्बन्ध जोड़कर उसको बहुत प्रसन्नता हुई और मन ही मन ठाकुरजी से कहने लगी “ठाकुर जी ! आज से मै आपकी भाभी और आप मेरे देवर हो गए, पर वो समय कब आएगा जब आप मुझे भाभी – भाभी कह कर पुकारोगे ?”_*
*_जब वो किशोरी ये सब सोच ही रही थी तभी एक किशोरवस्था का सांवला सा लड़का उधर आया और कहने लगा “भाभी-भाभी” लडकी अचानक अपने भाव से बाहर आई और सोचने लगी “वृंदावन में तो मै नई हूँ फिर ये भाभी कहकर पुकारने वाला कौन है ?”_*
*_वो नई थी इसलिए घूँघट उठाकर भी नहीं देखा कि गाँव के किसी बड़े-बूढ़े ने देख लिया तो बड़ी बदनामी होगी ।_*
*_जब वह बालक बार – बार कहता पर वह उत्तर ही न देती। बालक उसके और पास आया और कहा “ भाभी! थोड़ा अपना चेहरा तो दिखा दो”। अब वह सोचने लगी “ अरे ये बालक तो बहुत जिद कर रहा है।”_*
*_इसलिए वह अपना घूँघट और कस के पकड़कर बैठ गई कि कही घूँघट उठाकर देख न ले।_*
*_“भाभी आपने ये पर्दा क्यों कर रखा हैं हम तो आपके देवर हैं।_*
*_उस लड़की ने उसको एक नज़र देखा फिर कहा “नही हम आपको नहीं जानते” और कस कर घूँघट ओढ़ लिया।_*
*_“नहीं नहीं हम आपको जानते हैं आप उस गाँव के हो न बस कुछ ही दूर में हमारा घर भी है। भाभी अपना चेहरा तो दिखा दो।_*
*_“जब कह दिया न हम आपको नहीं जानते, इनको पता चल गया तो बहुत मार पड़ेगी”_*
*_“भाभी आप तो नाराज़ हो रही हो, देखो हम आपके इतने प्यारे देवर हैं आप से मिलने के लिए इतनी दूर तक आ गए और आप हो कि बात भी नहीं कर रहे हो। क्यों आप हम से मिलना नहीं चाहते थे।_*
*_और इतना कहते ही उस लड़के ने घूंघट खींच लिया और चेहरा देखकर भाग गया। थोड़ी देर में उसका पति भी आ गया, उसने अपने पति को सारी बात बताई।_*
*_पति बोला – “चिंता मत करो,वृंदावन बहुत बड़ा थोड़े ही है ,कभी भी किसी गली में लड़का मिल गया तो हड्डी – पसली एक कर दूँगा। फिर कभी ऐसा नहीं कर सकेगा। तुम्हे जब भी और जहाँ भी दिखे, मुझे बताना।”_*
*_फिर दोनों घर चले गए।_*
*_कुछ दिन बाद उसकी सासु माँ ने अपने बेटे से कहा – “बेटा ! देख तेरा विवाह हो गया अब बहू मायके से भी आ गई, पर तुम दोनों अभी तक बाँकेबिहारीजी के दर्शन के लिए नहीं गए कल तुम जाकर बहू को ठाकुरजी के दर्शन करा लाना।” अगले दिन दोनों पति पत्नी ठाकुर जी के दर्शन के लिए मंदिर चले गए। मंदिर में बहुत भीड़ थी, लड़का कहने लगा – “देखो ! तुम स्त्रियों के साथ आगे जाकर दर्शन कर आओ, मैं आता हूँ”। जब वो आगे गई पर घूंघट नहीं उठाया उसको डर लग रहा था कि कोई बडा-बुढा देखेगा तो कहेगा की नई बहू बिना घूँघट के ही घूम रही है। बहुत देर हो गई तो पीछे से पति ने आकर कहा “अरी पागल!_*
*_ठाकुरजी सामने है, घूँघट क्यों नहीं खोलती, घूँघट नहीं खोलेगी तो प्रभुजी के दर्शन कैसे करेगी ?”_*
*_अब उसने अपना घूँघट उठाया और जो बाँके बिहारी जी की ओर देखा तो बाँके बिहारी जी कि जगह वो ही बालक मुस्कुराता हुआ दिखा तो वह चिल्लाने लगी “सुनिये जी जल्दी आओ ! जल्दी आओ !”_*
*_पति जल्दी से भागा – भागा आया और बोला “क्या हुआ ?” लड़की बोली “ उस दिन जो मुझे भाभी-भाभी कह कर भागा था न वह लड़का मिल गया”।_*
*_पति ने कहा ‘कहाँ है? अभी उसे देखता हूँ बता तो जरा”।_*
*_उसने ठाकुर जी की ओर इशारा करके बोली – ‘ये रहा, आपके सामने ही तो है’। उसके पति ने जब देखा तो अवाक ही रह गया और वही मंदिर में ही अपनी पत्नी के चरणों में गिर पड़ा और बोला “तुम बहुत ही धन्य हो वास्तव में तुम्हारे ह्रदय में सच्चाभाव ठाकुरजी के प्रति है। हम इतने वर्षों से वृंदावन में है पर आज तक हमें उनके दर्शन नहीं हुए और तेरा भाव इतना उच्च है कि ठाकुर जी ने तुझे दर्शन दे दिए।”_*
*_ठाकुर जी से जो सच्चे प्रेम से जो भी रिश्ता रखो तो ठाकुर जी भी उसे जरूर निभाते हैं, जैसे इस कहानी में ठाकुरजी ने देवर का सबंध निभाया......._*
*_🌺प्रेम से बोलो श्री बिहारीलाल की जय......._*🌺
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