*राधास्वामी!! -/ 22-08-2021-(रविवार)आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-*
सतगुरु प्यारे ने बजाई, प्रेम मुरलिया हो।। टेक।।
सुन सुन धुन मोहित हुई मन में।
प्रेम बढा मेरे रगन रगन में।
जागी बिरह बिकलिया हो।१।*
*सत्सँग महिमा कस कहुँ गाई।
शब्द जुगत कस करूँ बडाई।
हरे बिकार सकलिया हो।२।*
*बिरह अगिन हिये भडकन लागी।
बिन पिया दरस चित्त बैरागी।
काम ने देत अक़लिया हो।३।* *
सतगुरु प्यारे दया उमँगाई।
दरशन दे मेरी प्यास बुझाई।
बरसत प्रेम ब.दलिया हो।४।
जग जिव गुरु महिमा नहिं जानें।
मन मत अपनी फिर फिर ठानें।
अटके जाय नक़लिया हो।५।* *
प्रेम भक्ति की सार न जानी।
भोगन माहिं रहे अटकानी।
फिर फिर काल निगलिया हो।६।
मो को सतगुरु लिया अपनाई।
चरन अमी रस नित्त पिलाई।
दिन दिन होत मँगलियां हो।७।*
सतगुरु दया गई भौ पारा।
सुन्न शब्द की सुनी पुकारा।
झाँका सेत कँवलिया हो।८।
वहाँ से सुरत अधर को धाई।
सत्तपुरुष धुन बीन सुनाई।
पहुँची सत धाम अमलिया हो।९।*
*राधास्वामी दय बना मम काजा।
अलख अगम का लखा समाजा।
अचल में जाय मचलिया हो।१०।*
*( प्रेमबानी- 3- शब्द- 40 -पृ.स़.138,139,140 )
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी!! / (रविवार)आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
*(1) सुन री सखी चढ महल बिराज।
जहाँ तेरे प्रीतम बैठे आज।।
-(राधास्वामी दिया मोही यह दाज।
अब मेरा होय न कभी अकाज।।)* *
(सारबचन-शब्द-30-पृ.सं.405,406-विशाखापत्तनम दयालनगर ब्राँच-अविकतम उपस्थिति-118)* *(2) सतगुरु प्यारे ने बजाई, प्रेम मुरलिया हो।।टेक।। सुन सुन धुन मोहित हुई मन में। प्रेम बढा*
*मेरे रगन रगन में।
जागी बिरह बिकलिया हो।।-
(जग जिव गुरु महिमा नहिं जानें।
मन मत अपनी फिर फिर ठानें।
अटके जाय नक़लिया हो।।)
(प्रेमबानी-3- शब्द- 40 -पृ.138,139,140) सतसंग के बाद:-* *(1) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।(प्रे.भा. मेलारामजी-फ्राँस)
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।.
(प्रे. ब. हुस्नआरा -सुपुत्री-स्व.प्रे.ब. मुन्नु बहिन जी!)
(3) Dr.Anna Horatschek's Poem.
(4) राधास्वामी मूल नाम।
(5) राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से।
जनम सुफल कर ले।
राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफलतर कर ले।
राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफलतम कर ले।।
विद्यार्थियों द्वारा पढे गये पाठ:-
(1) मेरे धूम भई अति भारी।
दरस राधास्वामी कीन्हा रे।।
(प्रेमबानी-3-शब्द-2-पृ.सं.177)
(2) धन्य धन्य सखी भाग हमारे धन्य गुरु का संग री।।टेक।।
(प्रेमबिलास-शब्द-126 -पृ.सं.185,186)
(3) राधास्वामी सतगुरु सरन पड़ा री।
राधास्वामी सतगुरु चरन गहा री।।
(प्रेमबिलास-शब्द-15-पृ.सं.19,20)
(4) गुरु मेरे प्रगटे जग में आय।
आरती उनकी करूँ सजाय।।
(प्रेमबानी-1-शब्द-8-पृ.सं.86,87)
(5) तमन्ना यही है कि जब तक जीऊँ। चलूँ या फिरूँ या कि मेहनत करूँ।। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलूँ कलाम।
न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्ज़ी तेरी के मुवाफ़िक़ न हो।
रज़ा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।।
मौज से पढा गया बचन:- सारबचन नसर- बचन न०-6 एवं 7*
*🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
No comments:
Post a Comment