Thursday, August 5, 2021

चलो चलें सतयुग की ओर.../ राजकिशोर सत्संगी

 सतयुग में जाने का, लगता है कोरोना एक अहम निमित्त बनेगा 

भले हम इसे अभी कोस रहे, पर यह युग-परिवर्तन करके रहेगा 

जितना जल्द बदलेंगे हम खुद को, वही वहां उतनी जल्द पहुंचेगा  परिवर्तन जो खुद में होगा शुरु, समाज के अंग-अंग को बदलेगा  ।।1।।


युग-परिवर्तन में कोई, बहुत बड़े भूचाल-प्रलय नहीं आते 

काम-क्रोध-लोभ-मोह-अहंकार, केवल वश में कराए जाते 

आदमी की क्या है हैसियत, उससे उसको रूबरू कराए जाते,  सहा कर ताप-दाब, किसी को सोना किसी को हीरा बनाए जाते ।।2।।


लोग निखरते दिख रहें हैं, अभी और भी निखरते जाएंगे 

सह के तमाम दुख-तकलीफ, जिंदगी के नजरिए बदलते जाएंगे 

रहन-सहन, खान-पान, आदतें, सबमें बड़े परिवर्तन आएंगे 

आबोहवा बदलेगा ऐसा, मन के भाव भी बदलते चले जाएंगे ।।3

 

अपनी जड़ों से हम, और अच्छे से समझ-जुड़ पाएंगे 

परिवार व रिस्तों का मूल्य, उन्हें दिल से निभा पाएंगे 

पुरातन-सनातन, संस्कार-संस्कृति को भली-भांति अपना पाएंगे 

होंगे भाग्यशाली, जो अपनी आंखों से सतयुग-दर्शन कर पाएंगे ।।4।।


छोड़-छाड़ कलयुग के कल-क्लेश, क्रोध-घृणा की बजरिया 

जहां पर है भेदभाव, भय-तनाव-चिंता की काली बदरिया 

शंखनाद हो चुका, जुड़-मिल चलो चलें सतयुग की डगरिया 

जो है, निर्मल चेतन सत्य प्रेम दया धर्म की पवित्र पावन नगरिया ।।5।।

                               _ _ _ _ _


(राजकिशोर सतसंगी)

17.05.2021

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