Friday, January 8, 2021

सतसंग सुबह दयालबाग़ 09/01

*राधास्वामी!! 09-01-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                     


(1) कहाँ लग कहूँ कुटिलता मन की। कान न माने गुरु के बचन की।। मन कपटी घट घट में पैठा। सब जीवन का पकडा फेंटा।।-(पडा रहे सतसंग के माहीं। धीरे धीरे तौ छुट जाई।।।।) (सारबचन-शब्द-पहला-पृ.सं. 239)        

(2) सुरत गुरु चरनन आन धरी।।टेक।। दुखी होय हट कर या जग से। गुरु सतसँग में आन अडी।।-(राधास्वामी दया दृष्टि अब कीन्ही। चरन सरन गह आज तरी।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-23-पृ.सं.384)                                              

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज -भाग 1- कल से आगे-( 8 )-25 दिसंबर 1939 आज शाम सत्संग में हुजूर साहबजी महाराज का एक बचन पढ़ा गया जिसमें फरमाया गया है कि-" ऐ मनुष्य! अगर तू चाहता है कि तेरी मोहब्बत गुरु महाराज के साथ जल मछली जैसी हो जावे तो मालूम होवे कि ऐसी प्रीति का होना बहुत कठिन हैं। 

इसका एक ही तरीका है कि सतगुरु के चरणों में सच्ची प्रीति कायम हो और सच्ची प्रीति व प्रतीति सेवा और सतसंग से प्राप्त होती है। जो मनुष्य दर्जा प्राप्त करना चाहता है उसको चाहिए कि चौकन्ना और खबरदार रहकर उनका सत्संग करें और सेवा करें । किताबें पढ़ने और गप्पे मारने या सुनने से यह दर्जा हासिल नहीं हो सकता ।"

                       

 हुजूर मेहताजी महाराज ने इस पर खास जोर दिया कि इसके मतलब को भली भांति समझ कर उस पर अमल करना चाहिए।  इसके बाद सत्संग के उपदेश से एक और वचन पढ़ा गया जिसमें पहले सवाल उठाया गया कि सतगुरु की प्रीति तभी संभव है जब जीव के अंदर दोष दृष्टि न रहे । इसका जवाब यह दिया गया कि निसंदेह यह भी मुश्किल जरूर है लेकिन इसका सिर्फ यही इलाज है कि जीव कुछ अर्से तक मन लगाकर उनकी सेवा और सत्संग करें क्योंकि ऐसा करने से उनकी तवज्जुह खुद उस जीव के तरफ आती है और उनके मुखातिब होते ही प्रेम के सिंधु सतगुरु अपने प्रेम से उसका हृदय भर देते हैं।  प्रेम और प्रीति हासिल करने के लिए इससे बढ़िया और आसान तरीका और कोई नहीं है।

 हुजूर मेहताजी महाराज ने इस बचन पर अपना ख्याल इस तरह से जाहिर किया, फरमाया-" ऐसे साफ अल्फाज में वचन लिखे हो और हर तरीके व बात को ऐसे साफ तौर पर बताया गया हो फिर भी अगर यें बातें हमारी समझ में न आवें तो इस कम समझी पर निहायत अफसोस। लेकिन वजह यह है कि जब बचन पढ़ा जाता है, तब हम दूसरी तरफ देखते रहते हैं और ध्यान वचन की तरफ पूरी तरह नहीं जाता। अगर बचन की तरफ पूरी तवज्जह की जाए और उसका अमल किया जाए तो उस वक्त आपको मेरी इस बात की सच्चाई का पता चलेगा । इसलिए आप सत्संग में बैठकर जरूर इस नसीहत पर अमल कीजिए और इससे फायदा उठाइए।

क्रमशः                                        

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

【भगवद् गीता के उपदेश】

- कल से आगे:-( 11)-

महाभारत के युद्ध का हाल ग्रंथकर्ता ने संजय के मुख से वर्णन कराया है । महाराष्ट्र  धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे इसलिए युद्ध में सम्मिलित नहीं हो सकते थे परंतु युद्ध का हाल जानने के लिए अत्यंत उत्सुक थे। उनकी प्रार्थना पर व्यास जी ने उनके साथी संजय को दिव्यदृष्टि प्रदान की जिसके द्वारा वह हस्तिनापुर में रहता हुआ युद्ध का सब हाल देखकर उन्हें सुनाता था।।                                                   

( 12)- बहुत से सज्जन इस कथा को आध्यात्मिक दृष्टि से पढ़ते हैं । वे कुरुक्षेत्र से तात्पर्य संसार लेते हैं, अर्जुन से परमार्थ का खोजी और दुर्योधन आदि से मन और इंद्रियों के विकार और सांसारिक विघ्न। यह अर्थ  पहिनाने से गीता का उपदेश हर प्रमार्थ के खोजी के लिए एक लाभदायक पाठ बन जाता है। पर बिना अवतारस्वरूप श्री कृष्ण जी ने एक खोजी क्या कर सकता है?  वह बेचारा रास्ता तो क्या चलेगा , स्वयं गीता के अर्थ भी समझने में असमर्थ है। ll  

 क्रमशः            

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻** ll  


**परम गुरु हुजूर महाराज -

प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:-

 पर शर्त यह है कि अभ्यासी सच्चे मन से पछतावा करके माफी चाहे और आइंदा को थोड़ी बहुत एहतियात करता जावे, और अपने मन और इंद्रियों की चाल के अंतर और बाहर निरख और परख यानी चौकीदारी करता रहे, और उनको नाकिस ख्याल और तरंग उठाने या ऐसे कामों में बरतने से जहाँ तक मुमकिन होवे रोकता रहे और जब जब चूक जावे तब तक प्रार्थना करें और अपने मन में शरमाकर माफी और आइंदा के वास्ते दया मांगे ।

 हर एक प्रेमी सत्संगी को चाहिए कि राधास्वामी दयाल की सरन, जिस कदर बन सके दृढ करें और सरन लेने से मतलब यह है कि सब कामों में उनकी दया और रक्षा का आसरा और भरोसा रक्खें और जब-जब और जैसे जैसे वे मेहर और दया करें उसका शुकराना अदा करता रहे और जहाँ तक बन सके अपनी चाह पेश न करें और जो करें तो सिर्फ इत्तिला और अर्ज करने के तौर पर ।

 जैसे राधास्वामी दयाल की मौज से उस काम को करें, उसमें जहाँ तक बन सके उनकी मौज के साथ राजी रहे और जो मन किसी कदर चक्कर लावे तो फिर अपना हाल अर्ज कर देवें । वे अपनी मेहर से जिस तरह मुनासिब होगा मन की संभाल करेंगे ।क्रमशः

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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