राधास्वामी!! 05-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) गुरु चरनन लौलीन सुरत जग किरत हटाई। मन इंद्रियन सँग प्यार और ब्यौहार घटाई।। सतसंग प्यारा लागता। और सुरत शब्द अभ्यास। सतगुरु सेवा धार कर हिये होवत नित्त हुलास।। रीति गुरु भक्ति लगी प्यारी।।-सतसंग में गुरु बैठ के निज बचन सुनाई। सुन सुन बाढा प्रेम सुरत मन अति सरमाई।।-(भवँर गुफा सुध बाँसरी किया सतगुरु चरन निवास।। सुरत हुई राधास्वामी की प्यारी।।) (प्रेमबानी -4-शब्द-5-पृ.सं.72,73)
(2) हित की बात खोल कहूँ प्यारे गुरु पूरे का खोज लगाना।।टेक।। बिन भगवंत भक्ति कहो कैसी गुरु पूरे का खोज लगाना।।-(राधास्वामी कहें तुम हित कर मानो गुरु पूरे का खोज लगाना।।) (प्रेमबिलास-शब्द-119-पृ.सं.175,176)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा- कल से आगे।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
राधास्वामी!! 05- 01-2021-
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-( 113 )
-ये पंक्तियाँ ध्यान देने योग्य है । इसके अतिरिक्त स्वयं उस सूत्र के अर्थ पर विचार कीजिये।सूत्र का अर्थ यह बतलाया गया है - "स्थान आदि के बतलाने से"। बात यह है कि छान्दोग्य उपनिषद (४-१५-१) में सत्यकाम गुरु ने उपकौशल शिष्य को उपदेश किया है- " जो यह आँख में पुरुष दीखता है यह आत्मा है। यह अमृत है , अभय है । यह ब्रह्म है "। इस पर सूत्र नंबर १३ में प्रश्न उठाया गया है कि आँख में दीखने वाला पुरुष प्रतिबिंब है या जीवात्मा या परमात्मा ।
इसके उत्तर में बताया गया कि यहाँ अभिप्राय परमात्मा ही से है , क्योंकि अमृत्व और अभयत्व केवल परमात्मा के गुण हो सकते हैं । इस पर फिर प्रश्न उठाया गया कि निवासी से निवासस्थान सदैव बड़ा होता है । जैसे समुद्र के जंतुओं से समुद्र , जिसमें वे रहते हैं , बड़ा ही होता है। तो फिर आँख परमात्मा से बड़ी होनी चाहिए।
यह सूत्र नंबर १४ का भावार्थ है। इसके उत्तर में एक श्रुति पेश की गई है जो बृहदारणयक उपनिषद् ३-७-१८ में भी आई है, और जिसका अर्थ निम्नलिखित है :- "जो नेत्र में रहकर नेत्र से अलग है, जिसको नेत्र नहीं जानता, नेत्र जिसका शरीर है , जो नेत्र के अंदर रहकर नेत्र को नियम में रखता है , यह तेरा आत्मा अंतर्यामी अमृत है"। और इस श्रुति को स्पष्ट करने के लिए बिजली का पूर्वोक्त द्दष्टान्त दिया गया है
।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा
- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!
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