**राधास्वामी!! 06-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गयज पाठ:-
(1) मन चंचल चहुँ दिस धाय। सखी मैं नहिं जाने दूँगी।। गुरु बल हियरे धार। बिघध कोइ नहिं आने दूँगी।।टेक।। -(गुरु का ध्यान सम्हार। चरन में मध को साध रहूँ।। बिन राधास्वामी नाम। और कुछ नहिन गाने दूँगी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-6-पृ.सं.73,74)
(2) समझ मोहि आई आज गुरु बात।।टेक।। निज घर है अति दूर ठिकाना। राह बिकट बल जोर न गात।।-(अलख अगम लख निज घर पाऊँ। राधास्वामी सतगुरु की निज दात।। ) ( प्रेमबिलास-शब्द-120-पृ.सं.174,175)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 06- 01- 2021-
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-( 114 )-
अब यदि इस श्रुति के प्रमाण से आँख में स्थित परमात्मा सीमाबद्ध नहीं हो जाता और माना जाता है कि वह नेत्र में रहकर नेत्र से अलग रहता है तो यह मानने में भी कोई कठिनाई न होनी चाहिए कि मनुष्य-शरीर में स्थित रहता हुआ परमात्मा या किसी ऊँचे धाम का धनी उस शरीर से अलग रहता है , और जैसे सामान्य रूप से व्यापक बिजली किसी को दिखाई नहीं देती और बादलों में उसका विशेष रूप से प्रकाश होने ही से दिखाई देती है ऐसे ही जब परमात्मा किसी शरीर में अपना विशेष रूप से प्रकाश करें तभी वह मनुष्य को दिखाई देता है । "और वही उसकी उपासना का स्थान बतलाया जा सकता है"।
(115)- यहाँ पर यह निवेदन करना आवश्यक और उपयुक्त प्रतीत होता है कि कृपया करके नेत्र में ब्रह्म के निवास के विषय में दी हुई श्रुति के उपदेश को विशेषतः ध्यान में रक्खें। इसी सिद्धांत पर संतमत में संतों और महात्माओं की दृष्टि लेने और चित्त जोड़ कर उनका दर्शन करने की प्रथा प्रचलित हुई । आगे चलकर आरती के संबंध में किये हुए आक्षेप का उत्तर समझने में इससे सहायता मिलेगी ।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा
- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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