**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
रोजाना वाक्यात- कल से आगे:-
राधास्वामी मत सिखलाता है कि जिसमें इंसान 3 घटक पर संयुक्त है। जिस्में खाकी, मन और रुह। मामूली इंसानों में रुह सोयी रहती है और सिर्फ जिस्म व मन को जान देने का काम करती है वजह यह है कि आम लोग अपनी जिस्मानी व दिमाग की शक्तियों को जागृत करने के लिए मुनासिब अमल करते हैं और रूहानी शक्तियों को बेदार करने के लिए कतई कोई साधन नहीं करते । इसलिए उनके अंदर जिस्मानी व मन की ख्वाहिशात का प्रभुत्व रहता है। लेकिन जो लोग जिक्र, फिक्र व कौशल की मदद से यानी सुमिरन ध्यान और भजन करके अपनी रूहानी शक्तियों को बेदार कर लेते हैं उनके दिल जिस्मानी व नफ्सानी ख्वाहिशात से पाक व साफ रहते हैं । उनके अंदर खुदा का नूर रोशन होता है और उनके हर स्वभाव में सच्चे मालिक का प्रेम भर जाता है । हजरत खलीफा साहब यह सुनकर खुश होगे कि राधास्वामी मत के हर अनुयाई को यह तीनों साधन बतलाए जाते हैं और हजारों सत्संगी रूहानियत के विषय के मुतअल्लिक आपकी उम्मीद से बहुत ज्यादा वाकिफीयत रखते हैं और मौलाना रूम के शेर - पंच वक्त आमद नमाजे रहनुमूँ( पांच बार की नमाज रास्ता देखने वालों (जिज्ञासुओं) की) आशिकानश रा सलाते दायमूँ( प्रेमीजन के लिये नमाज हर समय की) पर पूरे तौर कार्यरत है। और दरमियानी मंजिल (पडाव) पार करके इश्के इलाही की आखिरी मंजिल पर पहुँच हासिल करना अपनी जिंदगी का उद्देश्य बनाये हैं ।कोह शिमला पर इसी किस्म की बातें सुनकर और हफ्ता 10 दिन तक निरंतर बहस करने के बाद ही मौलवी उमरउद्दीन साहब अहमदी राधास्वामी सत्संग की जानिब प्रवृत्ति लाये थे और उन्हें बावजूद एक पुराना व जिम्मेवार अहमदी होने के इतना भी शुऊर न था कि सत्संग में शिरकत की ख्वाहिश जाहिर करने के पहले जांच करें आया दयालबाग के "मोचियो' को रुहानियत की तारीफ भी मालूम है या नहीं । तो इससे अहमदी जमाअत की तालीम ही पर दोष आता है कि इस कदर अर्सा में मौलवी साहब के अंदर इतनी भी योग्यता पैदा ना कर सकी। क्रमशः 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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