Saturday, October 24, 2020

संसार चक्र ( नाटक )

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-【 स्वराज्य】

 कल सेआगे 

- शाह- बड़े भाग्य है कि आप से तपस्वी और सच्चे महापुरुष के दर्शन नसीब हुए। 

उग्रसेन- मुझे अपना एक अदना बंदा ख्याल फरमावें।                                          

  शाह-मैंने प्लेटो की एक तस्नीफ में पढ़ा था कि बादशाहत का काम सबसे ज्ञानी पुरुषों के हाथ में होना चाहिये- आज की बातचीत के शुरू में जिन ख्याला का इजहार आपने फरमाया वे प्लेटो के ख्यालात से बिल्कुल मुत्तफिक है- मेरी मुश्किल यह है कि मैं हजार अपने मन को समझाता हूंँ कि सब जानदारों का जन्मदाता एक सच्चा मालिक है लेकिन मन यही कहता है कि जिसको देखा नहीं उसको इतना बड़ा दर्जा देना नामुनासिब है। 

उग्रसेन- लेकिन जबकि आपने उसके देखने के लिए कोशिश ही नहीं की तो आपकी यह मुश्किल कैसे दूर हो सकती है?

  शाह -गवर्नर लाहोर लिखते हैं कि आप ने उनकी यह मुश्किल हल कर दी- क्या यह बात दुरुस्त है?

 उग्रसेन- मैंने उन्हें योगसाधन बतलाया- उन्होंने उसकी दिल लगाकर कमाई की और सच्चे मालिक ने कृपा की और दर्शन देकर उनका जन्म सफल किया। 

शाह-  क्या आप मुझे भी वह साधन की युक्ति बतला सकते हैं?  उग्रसेन- जरूर , जो कुछ मेरा है वह आपका है और सब इंसानों का है- हम सब जीव एक ही मालिक के बच्चे हैं इसलिये सब भाई हैं- और जो कुछ मुझे उस परमपिता की कृपा से हासिल हुआ है वह सबका है।

 क्रमशः                                

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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