यंगमैन के प्रति ग्रेशस हुजूर के स्वर्णिम शब्द
मैंने पहले भी शायद आप ही लोगों से कहा है या General Satsang में कभी जिक्र किया है कि दयालबाग़ में सेवा मुश्किल से मिलती है , बहुत लोग कोशिश करते हैं नहीं मिल पाती तो जिसको मिले उसको मालिक का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उसको सेवा का यह मौक़ा मिला और जब तक काम रहे - सेवा करता रहे । तब तक हमेशा मालिक की दया का भरोसा रक्खे । किसी वक़्त अगर यह ख्याल आ गया कि मैं बहुत क्राबिल हूँ , मेरी काबलियत की वजह से यह काम हो रहा है , या मैं बहुत क़ाबिल हूँ इस वास्ते मुझको यह सेवा दी गई है , अगर ऐसा करेंगे तो मन में अहंकार पैदा हो जाएगा और अहंकार पैदा होने का मतलब यह हुआ कि दीनता से आप बहुत दूर हो जायेंगे और अगर आप दीनता से दूर हो गए तो आपका कोई परमार्थी काम ठीक से नहीं बनेगा । इस वास्ते हमेशा मालिक की दया का भरोसा रक्खो ।जो मौका मिले उसका Best Utilisation करना चाहिए और इत्तफ़ाक़ से आपको काम न मिले , या काम से आपको हटा दें या यह कहें कि यह काम न करो तो बुरा नहीं मानना चाहिए । उस वक़्त भी अपने मन में झुरना - पछताना चाहिए , मालिक से माफ़ी माँगनी चाहिए कि कोई कमी है , कोई गलती है जिसकी वजह से मुझको सेवा का जो मौक़ा मिला था वह मुझसे ले लिया गया । और अगर ऐसा आपका ख्याल रहेगा तो दीनता का अंग हमेशा साथ बना रहेगा , और सतसंग की नज़दीकी बहुत रहेगी , फिर आप सतसंग से कभी भी दूर नहीं रहेंगे । आपका किसी से झगड़ा ही नहीं होगा , किसी के बारे में आप बुरा ख्याल नहीं करेंगे , ये सब इसके फ़ायदे हैं ।
इसलिए मैं आपको यह सलाह दूंगा कि जो भी सेवा आपको मिले इन बातों का ध्यान रख करके जितना कर सकें उतना करें , जितना भी हो सके Sincerely काम करें , कोई ज़रूरी नहीं है कि हर सेवा में हर एक आदमी हर वक़्त शरीक हो , यह मुश्किल है लेकिन जब भी जितना जिसको मौक़ा मिले उसका पूरा फायदा उठाना चाहिए ।
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