शरणागति पर महाविश्वास
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हनुमान जी राम जी से कहते हैं–
भगवान् सुग्रीव बहुत दुखी हैं। आप उनसे मित्रता कर लीजिए ।
भगवान् बोले–
हनुमान, परिस्थिति तो हम दोनों की एक जैसी है । दोनों का ही घर छूट गया, दोनों की पत्नी छूट गई, तो दुखी से दुखी मिलेगा तो सुख कैसे होगा ? दुख नहीं बढ़ जाएगा ?
बड़ी बारीक बात है यहाँ। बाहर से तो दोनों की स्थिति एक जैसी है, पर भीतर बड़ा अंतर है । वस्तु का अभाव दोनों जगह है, पर जहाँ सुग्रीव के मन में इस अभाव का भाव है, वहीं राम जी के मन में इस अभाव का भाव नहीं है ।
सुग्रीव पहाड़ पर हैं, राम जी नीचे खड़े हैं। उन्हें ऊपर पहाड़ पर चढ़ना है। हनुमानजी ने राम जी, लक्षमण जी को कंधे पर चढ़ा लिया ।
लक्षमण जी बोले–
हनुमान जी हमें गिरा तो नहीं दोगे ? हनुमान जी कहते हैं –
आप एक काम करें, आप मेरा सिर पकड़ लें, मैं आपके चरण पकड़ लूँगा ।
फिर राम जी और लक्ष्मण जी दोनों ने
अपने भक्त हनुमान जी के सिर को पकड़ लिया और हनुमान जी ने भगवान् के श्रीचरणों को मजबूती (असीम श्रद्धा) से पकड़ लिया। अब हनुमान जी उड़ चले ।
हनुमान जी पूछते हैं–
सरकार अब तो नहीं गिरेंगे ?
लक्षमण जी बोले–
हाँ, अब हम अकेले नहीं गिरेंगे, पर यदि आप ही गिर गए, तब बचेंगे हम भी नहीं।
इतना सुनते ही हनुमान जी की आँखों में आँसू आ गए।
हनुमान जी बोले–
लक्षमण जी ! जिसके सिर पर भगवान् का हाथ हो, और जिसके हाथों में भगवान के चरण हों, अगर वही गिर जाएगा, तो बचेगा कौन?
ठीक ही कहा गया है–"संत न हों तो जीव को जगदीश से कौन मिलाए ?"
संत जीव को भगवान् की कथा सुनाता है। भगवान् को जीव की व्यथा सुनाता है, क्योंकि उसके पास न कोई अपनी कथा है और न ही कोई व्यथा ।
इसीलिए इस अटल सत्य को कोई मिथ्या नहीं कर सकता की
*संत न होते जगत में जल मरता संसार*
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