**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग-
1- कल से आगे -(14 )
इस वास्ते सच्चे परमार्थी जीवों को मुनासिब है कि संतों की जुगत लेकर अपना काम बनाना शुरू करें , पर इस कदर ख्याल रक्खें कि जितनी बने जिस कदर हो सके अपने मन और इच्छा की हालत बदलें। और यह हालत बगैर संतों की जुगत के अभ्यास के, जिससे मलीन देश और मलीन मन और मलीन माया और इच्छा से दिन दिन अलग होती जावेगी, किसी सूरत में और किसी तरह से हासिल नहीं हो सकती। इस वास्ते चाहिए कि अभ्यास नित्य होशियारी के साथ करें और अपने मन और इच्छा की हालत परख परख कर संतों के बचन के मुआफिक सँभालते और बदलते जावें। इस काम में सुरत शब्द का अभ्यास उनको मदद देगा और जो सचौटी के साथ यह अभ्यास शुरू करेंगे और सच्चे मालिक राधास्वामी दयाल और उनके सत्संग की सच्चे मन से सरन लेवेंगे , तो राधास्वामी दयाल कुल मालिक अंतर में दया करते जावेंगे और अपनी मेहर और दया से अभ्यासी का काम बनाते जावेंगे, यानी दिन दिन उसकी तरक्की होती जावेगी, और उसके साथ अंतर और बाहर और व्यवहार और बर्ताव और चाल ढाल में भी सफाई होती जावेगी और एक दिन सब काम दुरुस्ती के साथ बन जावेगा यानी सच्चा और पूरा उद्धार हासिल होगा। क्रमशः 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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