**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात
-5, 6 फरवरी 1933 -रविवार और सोमवार
:- इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन अविद्या है। अविद्या के बस होकर ही इंसान अहंकारी बनता है और मालिक से मुंह मोड़ कर अपने लिए मुसीबत के सामान पैदा करता है। और अविद्या से इंसान को तभी छुटकारा मिलता है जब उसके अंदर सत्य ज्ञान का प्रकाश हो। और सत्य ज्ञान का प्रकाश तभी मुमकिन है जब इंसान के मन व इन्द्री किसी कदर स्थिर होकर उसकी तवज्जुह अंतर में कायम हो। इसलिये इंसान का सबसे बड़ा मित्र वह साधन है जो उसे तवज्जुह अंतर में कायम करने में मददगार हो। जब किसी की तवज्जुह अंतर में जुड जाती है तो उसे खास किस्म की शांति, उसके दिल को ढाडस और उसे दिमाग के अंदर रोशनी हासिल हो जाती है।
ऐसे शख्स ही को योगमुक्त करते है। आजकल के नौजवान कहते हैं हम किसी का कहना न मानेंगे, हम अपनी अक्ल से काम लेंगें। लेकिन मेरा जवाब यह है भाई ! तुम खुशी से अपनी अक्ल से काम लो , लेकिन पहले उस अक्ल को काम के लायक तो बना लो। अविद्या के परदे से ढकी हुई अक्ल तो तुम्हें कहीं का कहीं ले जावेगी।
क्या तुम्हें ख्याल नहीं है कि जो अक्ल बचपन में होती है वह जवानी में गलत साबित हो जाती है और जवानी के वक्त की बहुत सी बातें अधेड उम्र में गलत साबित होती है ?
क्या तुम्हें याद नहीं है कि हालते बीमारी में तुम्हारा मन ऐसी चीजों के खाने के लिए दौडता है जो तुम्हारे लिए हानिकारक है? इन बातों से तुम्हे समझ आनी चाहिये कि जब कि नातजर्बेकारी व बीमारी के जमाने की समझबूझ अविश्वसनीय होती है तो जिनको दीन व दुनिया का पूरा तजर्बा हासिल है और जिन्होने मन की सभी बीमारियों को दूर कर लिया है उनकी अक्ल तुम्हारी अकल से कई गुना बेहतर होगी और ऐसे पुरुषों की हिदायतों पर अमल करना तुम्हारे लिये लाभकारी होगा।।
रात के सत्संग में इस मजमून पर विस्तार से बातचीत हुई। और नतीजा निकाला गया कि अगर भाग से किसी को सच्चे सतगुरु मिल जाये़ तो उसे उनके आदेशों की दिलोजान से तामील करनी चाहिये।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏✌️🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
No comments:
Post a Comment