Wednesday, October 28, 2020

हम वो आखिरी पीढ़ी के लोग हैं......

 मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि दुनिया में ‌जितना बदलाव हमारी पीढ़ी ने देखा है वह ना तो हमसे पहले किसी पीढ़ी ने देखा है और ना ही हमारे बाद किसी पीढ़ी के देखने की संभावना लगती है।


#हम_वो_आखरी_पीढ़ी_हैं जिसने बैलगाड़ी से लेकर सुपर सोनिका जेट देखें हैं। बैरंग ख़त से लेकर लाइव चैटिंग तक देखा है और असंभव लगने वाली बहुत सी बातों को संभव होता देखा है। 


● #हम_वो_आखरी_पीढ़ी_हैं

जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं।


● #हम_वो_आखरी_पीढ़ी_के_लोग_हैं 

जिन्होंने कम या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है और चादर के अंदर छिपा कर नावेल पढ़े हैं।  


● #हम_वही_पीढ़ी_के_लोग_हैं

जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात, खतों में आदान प्रदान किये हैं और उन ख़तो के पहुंचने और जवाब के वापस आने में महीनों तक इंतजार किया है।


● #हम_वो_आखरी_पीढ़ी_के_लोग_हैं

जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही  बचपन गुज़ारा है। और बिजली के बिना भी गुज़ारा किया है।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जो अक्सर अपने छोटे बालों में, सरसों का ज्यादा तेल लगा कर, स्कूल और शादियों में जाया करते थे।


● #हम_वो_आखरी_पीढ़ी_के_लोग_हैं

जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी,  किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये है। तख़्ती पर सेठे की क़लम से लिखा है और तख़्ती घोटी है।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है। और घर में शिकायत करने पर फिर मार खाई है।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जो मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते थे। और समाज के बड़े बूढों की इज़्ज़त डरने की हद तक करते थे।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जिन्होंने अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर, खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया हैं।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जिन्होंने गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव बनाई है। जिन्होंने गुड़  की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है और कभी कभी तो नमक से या लकड़ी के कोयले से दांत साफ किए हैं। 


● #हम_निश्चित_ही_वो_लोग_हैं

जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो, बिनाका गीत माला और हवा महल जैसे  प्रोग्राम पूरी शिद्दत से सुने हैं।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जब हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे। उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे। एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था। सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे। वो सब दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं। डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं।


● #हम_वो_आखरी_पीढ़ी_के_लोग_हैं

जिन्होने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखे हैं, जो लगातार कम होते चले गए। अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन, व निराशा में खोते जा रहे हैं। और #हम_वो_खुशनसीब_लोग_हैं, जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है...!!


#हम_एकमात्र_वह_पीढी_है  जिसने अपने माँ-बाप की बात भी मानी और बच्चों की भी मान रहे है.


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ये पोस्ट जिंदगी का एक आदर्श स्मरणीय पलों को दर्शाती है अतः मुझे अच्छी लगी सो फारवर्ड की। इसे बार बार पढ़ें। पसन्द आए तो आगे भी फारवर्ड करें।


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