Tuesday, October 13, 2020

दयालबाग़ सतसंग ( शाम )) 13/10

 **राधास्वामी!! 13-10-2020-

 आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-  

                                   (

1) प्यारे गफलत छोडो सर बसर, गुरु बचन सुनो तुम होश धर। मन की तरंगे रोक कर, सतसंग में तुम बैठो जाय।। सतगुरु से कर आन प्यार, उनसे ले भेद सार। सुरत शब्द मारग अपार, सुरत मन धुन से लगाय।।-(धाम अनामी धुर अधर, निरखा जाय अति प्रेम कर। राधास्वामी चरनन सीस धर, अस्तुत उनकी रही गाय।।) (प्रेमबानी-3-गजल-6,पृ.सं.400)                                             

(2) सुन सेवक का हाल दयानिधि बचन सुनाया। दया धार बरसाय दर्द दुख दूर बहाया।।- (ज्यों ज्यों जागे भाग खुले सब गुप्त द्वारे। सहज जीव निरबार मेल हो निज भंबारे।।) (प्रेमबिलास -शब्द-70-उत्तर-पृ.सं.95)                  

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!!     

- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे-(14)

  ऊपर लिखे परमाणों से प्रकट है कि मन को स्थिर करने के लिए सतगुरुस्वरूप का ध्यान एक उचित साधन माना गया है। गुरु अमरदास जी का आदेश तो सर्वथा स्पष्ट ही है । पतंजलि महाराज का मत है कि मन को स्थिर करने के लिए संसार के मोह से रहित पुरुषों का या जिसमें जिसका प्रेम है उसके स्वरूप का ध्यान करना चाहिए। 

 यह प्रकट है कि सतगुरु से अधिक और कोई व्यक्ति संसार के मोह से रहित नहीं हो सकता और यदि जिज्ञासु का उनके चरणों में प्रेम भी लगा हो तो फिर तो सतगुरु स्वरुप का ध्यान करने में एक साथ ही दोनों साधन बन जाते हैं। और, जैसाकि वर्णन किया गया, निर्मल प्रीति की हिलोर उठने पर यह अभ्यास अत्यंत सुगम हो जाता है ।

 सुमिरन ध्यान का अभ्यास कुछ समय ठीक रीति से भली प्रकार बन पड़ने पर अभ्यासी के मन और सुरत अंतर में छठे चक्र पर, जोकि मनुष्य-शरीर में सुरत की बैठक का स्थान है, सिमटने लगते हैं। 

पर जोकि आरंभ में इस स्थान पर अभ्यासी की दशा केवल एक नवजात शिशु की सी होती है  इसलिए वे इस स्थान पर अधिक समय तक ठहर नहीं सकते। वे वहाँ से बार-बार निचले स्थानों की ओर गिरते हैं और अभ्यासी के अन्तर में खैंचातानी की सी दशा उत्पन्न हो जाती है।।

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 

यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा-

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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