**राधास्वामी!! 18-10-2020:-
आज भंडारा के अवसर पर आरती के समय पढा गया पाठ:- (1) जीव चिताय रहे राधास्वामी। सतपुर निज पुर अगम अधामी।।-(राधास्वामी कहा बनाई। सदा रहे सतनाम सहाई।।) [सारबचन-शब्द-22वाँ,(1-8,पुरुष पाठ पार्टी-9-15 महीला पाठ पार्टी)पृ.सं.158-160)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! आरती के बाद पढे गये पाठ:-
(1) यह सतसंग और राधास्वामी है नाम। सरन आओ हे करमियों तुम तमाम।।-(कि धन धन है धन धन है सतगुरु मेरे। उतारेंगे भौजल से बेशक परे।।) (प्रेमबानी-3-गजल-10,पृ.सं.380)
(2) मेरा साचा साहेब। एक तू ,एक तू , बंदा आशिक तेरा।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻** *🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*परम गुरु महाराज साहब के बचन-प्रेमप्रचारक विशेषांक-राधास्वामी सम्वत् 203,अंक-45, अक्टूबर-2020
【भाग-1, 2 जून 1907】-( 24 )
-जब तक सतगुरु की परतीत नहीं आवेगी और प्रीति नहीं आवेगी और नाम का सुमिरन नहीं पकाया जावेगा, तब तक शब्द नहीं खुलेगा। सतगुरु राधास्वामी दयाल का ही रूप है। उनके रूप का ध्यान करने से गोया निज रूप से मेल करना है । और राधास्वामी नाम ऐसा सच्चा और असली नाम है कि उसके सुमिरन को अपने अंतर में पकाने से निज नाम से मेल होगा।◆◆(यहाँ तक पढा गया)◆◆
यों तो सैकड़ों बासबूत( प्रमाण सहित) और दन्दाँशिकन( दाँत तोड़ने वाले) जवाब उन लोगों के वास्ते हैं जो कहते हैं कि यों ही गढ गढाकर एक नया नाम राधास्वामी रख लिया है, मगर सत्संगियों के वास्ते सिर्फ जबान से यकीन दिला देना और कह देना कुल दलीलों से बढ़कर है। सतगुरु दयाल में ऐसी प्रीति होनी चाहिए जैसे चंदा से चकोर को या स्वाँति से पपीहे को है। तब अंतर में रास्ता खुलेगा, गुप्त भेद नजर पड़ेगा। आठों पहर उसी तरफ तवज्जो रहे।
【धन्य धन्य गुरु देव, दयासिंधु पूरन धनी। नित्त करूँ तुम सेव, अचल भक्ति मोहि देव प्रभु।।】
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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