Monday, October 5, 2020

स्वराज्य ( नाटक )

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज - 【स्वराज्य】 कल से आगे - 


यवनसम्राट! आओ और महिलासमाज के जलसे के अंदर उन देवियों के दर्शन करो । ये देवियाँ अपने शरीरबल से और अपने आत्मबल से इस देश की रक्षा करेंगी। हे महाराज! हमारे पिछले पापों का प्रायश्चित हो गया है- आपके सुपुत्रों ने अत्यंत कृपा करके हमारे सब मलों को धो दिया है- धोये हुए पापों और मलों के लिए अब हमें दंड न देना चाहिये- हमें अपने हृदय से लगाओ और राज्याधिकारियों को आज्ञा दो जबकि आपने हमें अपना पुत्र स्वीकार कर लिया है तो वह भी हमें अपना भाई समझने लगे। गिरे हुए को उठाना किसी बलवान् का काम होता है और गिरो को उठाने का शुभ अवसर किसी भाग्यवान् ही को प्राप्त होता है। आपने और आपके राज्याधिकारियों ने हम गिरो को उठाया इसलिए आप बलवान् भी हैं और बड़भागी भी;  लेकिन हमें उठाकर अर्थात् अपने समान खड़ा करके घृणा की दृष्टि से मत देखो और हमें फूलने और फलने के लिए यवनदेशवासियों के समान स्वतंत्रता दो। क्या ही अच्छा हो अगर दोनों देश मिलकर मनुष्यमात्र की सेवा करें और संसार से दुःखो और क्लेशो के दूर करने के लिए यत्न और परिश्रम करें ! (सुनो सुनो )                         प्यारी बहिनों! मैं समझ सकती हूँ कि इस समय आपके हृदयों में क्या प्रश्न उठ रहा है । आप यह विचार रही हैं आया इस देश को कभी स्वराज्य मिलेगा भी ?  मैं उत्तर में कहती हूँ  कि अवश्य इस देश को 1 दिन  स्वराज्य प्राप्त होगा - यह असंभव है कि एक परमात्मा की प्रजा होते हुए कोई जाति सदा के लिए आत्मनिर्णय के अधिकार से वंचित रहे। नगरकोट की देवियों! तुम जरा हिम्मत करो और परमात्मा के न्याय, परमात्मा की दया और अपने आत्मबल में दृढ़ विश्वास रक्खो । जो संतान पैदा हो उसको आरंभ ही से शूरता और अपने पाँव के बल पर खड़ा होने का उपदेश करो - कोई नगरकोटनिवासी भिक्षा या चंदा न माँगे- हर कोई अपने पसीने की कमाई में गुजारा करें और हर एक स्त्री व पुरुष अपनी कमाई का एक भाग देशोन्नति व देशोपकार सम्बन्धी संस्थाओं के लिए प्रसन्नता से दान करें -और स्त्रियाँ पुरुषों को और पुरुष स्त्रियों को यथायोग्य सम्मान की दृष्टि से देखें और समझे कि नगरकोट में न कोई छोटा है, न बड़ा- न अमीर है, न गरीब-  सब के सब इस देश के पुत्र और पुत्रियाँ हैं सब मिलकर जोर लगावें- बेड़ा पार है ! (जरा रुककर)  मगर हाँ! से आत्मबल कहाँ से आवे? हे  परमात्मन्!  आप कृपा करके हमें आत्मबल प्रदान करें। महाराज उग्रसेन! आप आत्मदर्शन के लिए बनो में गए थे -अगर आपका संकल्प पूरा हो चुका है तो नगरकोट लौटने की कृपा करें- हे महाराज! आपका देश आपके लिए रुदन करता है-  आप आवे और अपने प्यारे देश के सहायता करें। हाय!  यदि  आज महाराज उग्रसेन विद्यमान होते तो हमारे देश की यह अवस्था में होती । वायु देवता! मेरी पुकार महाराज उग्रसेन के कानों तक पहुंचाओ।( फूट-फूट कर रोने लगती है और कुर्सी पर गिर पड़ती है ।इतने में एक कोने से एक संन्यासी निकलकर चबूतरे की तरफ बढ़ता है और ऊपर चढ़कर हाजरीन से मुखातिब होकर कहता है।) क्रमशः            🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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