**परम गुरु साहबजी महाराज
-【स्वराज्य 】 नाटक
कल से आगे:- हरिचंद -हैं! सचमुच महाराज उग्रसैन बन से लौट आये? क्या उन्होंने अपना संकल्प पूरा कर लिया? हरदेवी -सुना तो यही था। हरीचंद-राजकुमारी जी की बातों का क्या जिक्र करती हो- महाराज उग्रसेन अव्वल तो खुद राजा रह चुके हैं, दूसरे वर्षों तक तप करके आये हैं, उनकी बात ज्यादा मानने योग्य हैं । हरदेवी- आखिर पुरुष का मन पुरुष ही की तरफ झुकता है- आप राजकुमारी जी की बातों का, जो स्त्री है, क्यों आदर करने लगे ? हरीचंद -(रुमाल से आँखे मलकर नहीं, यह बात नहीं- मैं मानता हूँ कि हमारे देश की भूल है कि स्त्रियों का योग्य सम्मान नहीं किया जाता राजकुमारी जी तो राजपुत्री है लेकिन महाराज उग्रसेन एक पुराने तजरुबेकार पुरुष है और राजकुमारी जी के लिए अभी बहुत कुछ सीखने के लिए बाकी है ।। हरदेवी- अच्छा यह बताओ कि व्याख्यान की बातें सुनकर आप के चित्त पर क्या असर होता है। हरीचंद- असर यही होता है कि इस देश के सिर पर कोई नई मुसीबत आने वाली है मगर अभी तो राजकुमारी जी और महाराज उग्रसेन गिरफ्तार हो गये है- देखिये इसका का नतीजा क्या होता है।। हरदेवी- नतीजा अच्छा ही होगा ।दोनों के हृदय शुद्ध है -यवनसम्राट् का कोई अशुभचिंतक नहीं है- यह नामुमकिन है कि नगरकोटनिवासियों को स्वराज्य मिल जावे। गोपालचंद्र- माता जी! स्वराज्य क्या होता है? इंद्रदेवी- जब तुम बड़े होगे उस वक्त समझ लेना और देख लेना कि स्वराज्य क्या होता है- अभी तो स्वराज्य हमने भी नहीं देखा , तुम्हे क्या बतावें। हरदेवी-हाँ- एक बात और बतलाई थी कि हमें अपनी संतान को बचपन से शूरता और अपने पाँव पर खड़े होने का उपदेश सुनाना चाहिये। गोपालचंद्र-( एकदम खड़ा होकर) देखो-मैं तो अपने पाँव पर अभी खड़ा हो सकता हूँ। हरीचंद- अभी तो गोपाल को आप लोगों ने उपदेश सुनाना शुरू भी नहीं किया और इसका यह हाल है- उपदेश सुनकर, भगवान जानें, यह क्या करने लगे! इंद्रदेवी-करेगा क्या-शूर वीर बन जायगा और शूरता दिखलायेगा। गोपालचंद्र- (अकड कर चलता है) ऐसे चला करूँगा। हरीचंद- भगवान् अपनी कृपा ही करें- मुझे तो लक्षण खराब दिखलाई देते हैं। हरदेवी- जिनका हृदय शुद्ध है भगवान् की कृपा का आसरा रहता है और भगवान उनकी सदा रक्षा करते हैं ।चलो उठो- अब बहुत देर हो गई है । [सब उठ जाते हैं ] क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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