**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1-
कल से आगे -(11 )
इस वास्ते कुल जीवों को, चाहे मर्द होवें या औरत , मुनासिब और लाजिम है कि अपनी जिंदगी संत मत का भेद और उसके अभ्यास की जुगती समझ कर जिस कदर बने कार्रवाई शुरू करें और अपने मन का घाट यानी मुकाम बदलवावें, तब यह भूल और भरम और गफलत, जिस कदर अभ्यास और सत्संग बनता जावेगा , दूर होती जावेगी। और जिन खयालों में कि मन भरमता रहता है उनकी आहिस्ता आहिस्ता कमी और अभाव होता जावेगा और भोगों की तरफ से चित्त हटता जावेगा और होशियारी बढ़ती जावेगी अंतर में रस और आनंद सुरत और शब्द की धार का ध्यान और भजन के अभ्यास में मिलता जावेगा और मन और सुरत उसके आसरे चढ़ते जावेंगे और भूल और भरम और दुख सुख और कर्म के स्थान से हटते जावेंगे और रफ्ता रफ्ता त्रिकुटी में पहुँच कर मन अपने निज घर में रह जवेगा, और वहाँ से सुरत न्यारी होकर अकेली अपने निज देश में, जो कि सत्तलोक और राधास्वामी धाम है, पहुँच कर अमर और परम आनंद को प्राप्त होगी और तब जन्म मरण और देहियों के बंधन से सच्चा छुटकारा और बचाव हो जावेगा । क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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