**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र- भाग 1
- कल से आगे-( 38)-
【 मन की भूल भरम और गफलत और बेपरवाही】-
(1) मन में भूल और भरम निहायत एक दर्जे की धसी हुई है । सबब इसका यह है कि अनेक ख्याल और अनेख कामों का फिक्र और अनेक बातों का बंदोबस्त मुनासिब और जरूरी या व्यर्थ इसने अपने सिर पर ले लिया है और कोई वक्त ऐसा नहीं होता है कि जो यह मन खाली और चुप बैठे।
जो किसी वक्त कोई काम नहीं करता है तो वर्तमान समय और भविष्य के दुःख सुख के ख्यालों में लगा रहता है और अपनी समझ के मुआफिक तरह तरह की चाहो के पूरा करने की जुगत और जतन सोचता रहता है, या किसी काम की दुरुस्ती की आशा बाँध कर उसके सामान और तैयारी या उसके फल के भोगने के खयाल में अपना वक्त खोता है। और किसी से प्रीति और किसी से बैर विरोध और किसी से डर व खतरें के झगड़ों में चक्कर खाया करता है और अपनी पिछली और हाल और आइंदा की हालत की अपनी समझ के मुआफिक तरह-तरह की बडाई और मान के ख्याल उठा कर अहंकार बढाता है।।
(2) इन कामों में यह मन हर वक्त ऐसा लिपटा रहता है कि कभी इसको बेफिक्री और फुर्सत नहीं मिलती। और जिस किसी के पास दुनियाँ का सामान और धन और कुटुम्ब परिवार ज्यादा है, उसी कदर वह मन और माया के पंजे में ज्यादा गिरफ्तार रहता है ।।
अपने मरने का शौक बहुत कम आता है और इस बात का विचार बाद मरने के क्या हाल होगा यह जीव कहाँ जावेगा, कभी मन में नहीं आता है । और जो किसी को मरते देखता है या किसी की मौत का हाल सुनता है , तो शायद थोड़ी देर के वास्ते उसका जिक्र अफसोस या रंज या अचरज के साथ करता है और फिर बहुत जल्द उसको भूल जाता है और दूसरे कामों या बातों के ख्याल में पड जाता है।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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