परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
【स्वराज्य】
- कल से आगे :-
शाह -अगर आप सचमुच साबिक राजा नगरकोट है, तो कुदरतन आपके दिल में अपना राज्य दोबारा हासिल करने के लिए जज्बात उठते होंगे और नामुमकिन नहीं है कि इन जज्बात ही की वजह से आप इस वक्त इस किस्म के ख्यालात का इजहार कर रहे हो?
उग्रसेन- हरगिज़ नहीं- सन्यासी को राजपाट क्या, दुनिया की किसी भी चीज की ख्वाहिश नहीं होती।
एक सरदार -आलीजाह! मेरी राय नाकिस में यह शख्स निहायत मखदूश है।
शाह - नगरकोट के पुलिस अफसर ने भी यही ख्याल जाहिर किया था लेकिन
गवर्नर लाहोर- बाद काफी तहकीकात के खिलाफ- नतीजे पर पहुंचे हैं।* **
वजीर-अगर हुजूर इजाजत बख्शे तो मैं कुछ अर्ज करूँ? शाह- इजाजत है ।
वजीर-(उग्रसेन से) हाँ- आप कोई सबूत पेश नहीं कर सकते जिससे हमें ना हो कि आप साबिक राजा नगरकोट है?
उग्रसेन-जी नही- यहाँ मेरे पास कोई सबूत नहीं है।
वजीर- सबूत की अदम मौजूदगी में आपको एक मखदूश रिआया क्यों न तसव्वुर किया जावे?* *
*उग्रसेन-(बेखौफी से) आपको इख्तियार है।
वजीर- इस खातून ने, जिसे आप अपनी दुख्तर बयान करते हैं, नगरकोट में महिलासमाज कायम करके बगावत की तहरीक शुरू की और.............*
**राजकुमारी-( बात काटकर) नहीं, अपने मुल्क के लिए आजादी की।
वजीर- (नाराज होकर) मुझे अपनी बात खत्म कर लेने दो,(मामूली तौर से)महिलसमाज के एक जल्से में दो धुआंधार तकरीरें हुई जिससे हाजिरीन जल्सा जोश में भर आये और हमारे पुलिस अफसर को मजबूरन् जल्सा मुन्तशिर करना पड़ा क्योंकि अगलब था कि फौरन बलवा हो जाता -
जल्से के व्याख्यान देने वालों में एक खातून राजकुमारी थी, और अगर मैं गलती नहीं करता तो वह खातून आप ही थी?
राजकुमारी-(बेखौफी से ) जी हाँ-वह खातून मैं ही थी।
वजीर- उस खातून की तकरीर खत्म होने पर इन संन्यासी साहब ने जोश में आकर फरमाया कि मैं हर तरह नगरकोटनिवासियों की मदद करने के लिए तैयार हूँ।जबकि ननगरकोट के रहने वाले शाह यूनान की हुकुमत का जुआ उतार फेंकनें की कोशिश में और ये संन्यासी साहब हर तरह इमदाद करने के लिये रजामन्दी जाहिर करते थे तो मेरी राय में यह सरहीन् बरगलाने वाला तरीके अमल था।
उग्रसेन-(शाह से मुखातिब होकर) अगर इजाजत हो तो मैं कुछ जवाब अर्ज करुँ?
वजीर- और आपको याद रखना चाहिए कि इस तरीके अमल की सजा फाँसी है।
शाह- आप जो चाहे कह सकते हैं । उग्रसेन-संन्यासी कभी झूठ न बोलेगा - उसे न जीने की परवाह है और न मरने का डर है।जबकि मैनें शुरु ही में अर्ज किया कि दुनिया में राज्य खास भाव व आदर्श रखने वालों को मिला करता है और जबकि शाह यूनान का दिल खुद उस आदर्श को कबूल नहीं करता जिसकी निस्बत मैंने अपना अनुभव जाहिर किया तो फिर यह नतीजा कैसे निकाला जा सकता है कि मैं नगरकोटनिवासियों का फौरन स्वराज्य हासिल करने की कोशिश में हामुं हूँ जबकि वे अभी बलिहाज भावों व आदर्शों के अहले यूनान से भी नीचे जीने पर है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
( प्रेमपत्र - )
परम गुर हुजूर महाराज -प्रेम पत्र- भाग 1-
कल से आगे-(4)
मन से एक वक्त में एक ही काम हो सकता है। इस वास्ते अभ्यासी को मुनासिब है कि जब भजन में न लगे, तब उसको ध्यान में लगावे। और जो ध्यान में भी अच्छी तरह न लगे और प्रेम की कड़ियाँ गाकर भी ख्याल को न छोड़े, तो सिर्फ सुमिरन करें , इस तरकीब से कि मुकाम नाफ( नाभि) या हृदय से नाम की धुन अंदर ही अंदर थोड़ी आवाज के साथ उठावे, और हृदय और कंठ चक्र के स्थान पर, एक एक हिस्सा नाम का उच्चारण करता हुआ सहसदलकँवल के स्थान या त्रिकुटी में ठहरावे यानी धुन को खत्म करे।
और फिर इसी तरह दूसरी दफा नाम का उच्चारण नाफ(नाभि) से लेकर सहसदलकँवल तक करें, यानी चार हिस्से करके एक एक हिस्सा नाम का उच्चारण एक-एक चक्र के मुकाम पर करके आख़ीर हिस्सा सहसदलकँ में खत्म करें , जैसा कि नीचे लिखा है:-
【नाफ-रा,हृदय-धा,कंठ-स्वा,सहसदलकँवल-मी】
और जो हृदय चक्र से उठावे, तो त्रिकुटी में खत्म करे-इस तरह-
【हृदय-रा,कंठ-धा, सहसदलकँवल-स्वा, त्रिकुटी-मी】
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
No comments:
Post a Comment