**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेमपत्र भाग- 1
- कल से आगे -(7 )
और अब जो कोई घर का पता बतावे और सच्चे माता पिता कुल मालिक राधास्वामी दयाल का भेद सुनावे, तो उसकी पूरी प्रतीति या बिल्कुल प्रतीति नहीं आती है। और सबब उसका यह है कि कालपुरुष ने अपनी कलायें इस दुनियाँ में भेजकर यानी पैदा करके अनेक मत और अनेक चालें जारी करीं और अनेक ईस्ट लोगों को बँधवाये,और इन सब बातों और कामों में मन को किसी न किसी तरह का भोग और रस दिया, चाहे वह इंद्रियों का रस है या मान बडाई और पूजा प्रतिष्ठा का भोग है।
इतने पर भी लोग काल पुरुष के हुकुम के मुआफिक वेद पुराण, कुरान और बाइबिल और अनेक मत की किताबें जो उसने जारी किया, नहीं मानते हैं और न गौर और फिक्र से उन किताबों के मतलब को समझते हैं, पर बाहरी रस्म और रिति और चाल ढाल में, जो अक्सर करके रोजगारियों ने चलाई और जिनमें मन और इंद्रियों को सैर और तमाशा और भोगों का रस बराबर मिलता है और अहंकार बढ़ता है, बहुत खुशी से शामिल होते हैं ।
और अंतर का अभ्यास जिसमें तन ,मन और इंद्रियों को थोड़ा बहुत रोकना पड़ता है, पसंद नहीं आता और जो कोई अपने मत के मुआफिक उसको करते भी हैं, तो उसमें मन नहीं लगाते और ऊपरी तौर पर काम करते हैं। इस सबब से काल मत की हद तक की भी कोई बिरले पहुंचे या पहुंचते हैं।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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