परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात-
कल से आगे :-
कुछ अरसा हुआ उस्मानपुर रियासत हैदराबाद के एक स्वामी आये थे। आज उनके गुरु साहब आये हैं। गीता के बड़े प्रेमी है। मैंने दरयाफ्तत किया- आपकी राय में गीता का निज उपदेश यानी निचोड क्या है। जवाब दिया गया कि "भगवान को याद रखते हुए धर्म का पालन"। मशरिक ने भगवान को याद रखा लेकिन धर्म का पालन छोड़ दिया और मगरिब ने भगवान को भुला दिया और धर्म का पालन किया।
इसलिये दोनों दुःखी है। इस पर मैंने अपना ख्याल जाहिर किया। मेरी राय में गीता की मूल शिक्षा यह है कि' इंसान देह स्वरूप भगवान की तलाश करें और मिल जाने पर उसकी आज्ञा में चले"। अलबत्ता अगर किसी को देह स्वरूप भगवान न मिले तो वह जैसे तैसे उनकी याद करता हुआ अपने धर्म का पालन करें। आपने "ज्ञानेश्वरी" के हवाले से इस ख्याल को सही तस्लीम किया और कहा कि लोग गुरुडम के डर से इन बातों से घबराते हैं। वरना गीता का असली उद्देश्य यही है ।।
डेरी का हिसाब देख मुझे मालूम हुआ कि सत्संगी भाइयों व बहनों ने मक्खन के इस्तेमाल के बाबत मेरा मशवरा मंजूर कर लिया है। फरवरी तक यह दस्तूर था कि घर लौटते वक्त लोग दयालबाग से मिठाई बतौर प्रसाद ले जाते थे । लेकिन अब मक्खन ले जाने लगे हैं ।
अगर यह सिलसिला स्थाई तौर से कायम हो गया तो संगत के दीन व दुनिया दोनों सुधर जायेंगे। इंसान दुनिया का सुख और दीन का आनंद तो चाहता है लेकिन उनकी प्राप्ति के लिए जो साधन जरूरी है उनसे लापरवाह रहता है। डेरी ने अब बाकायदा तौर पर घी की तैयारी और विक्रय का भी बंदोबस्त कर दिया ताकि जो भाई मक्खन का इस्तेमाल पसंद न करें वह घी इस्तेमाल कर लें।
ए सतसंगी भाइयों! हाथी कीचड़ में फंसा है। उसे निकल जाने की दो सूरते हैं। या तो अपने बल से निकल सकता है या कोई धनी उसके निकालने के लिए बन्दोबस्त करे। और अगर दोनों संजोग मिल जायें फिर तो क्या ही कहना है। इसलिये बेहतर होगा कि तुम भी जोर लगाओ और मालिक भी मदद फरमायें। ताकि सहज में सब का कल्याण हो जाये।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
*परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1
- कल से आगे- (8)
अलावा इसके जो कालपुरुष ने अपने मतों में रास्ता या तरकीब अभ्यास की जारी करी, वह ऐसी कठिन बतलाई कि न ग्रहस्थ से बने और न विरक्त से और इसमें उसका असली मतलब यही था कि कोई भी उसके स्थान तक न पहुंचे ।
और सच्चे मालिक सत्तपुरुष राधास्वामी दयाल के भेद से तो वह आप ही जानकार नहीं, फिर औरों को क्या समझाता। और जो थोड़ा सा हाल सत्तलोक तक का उसको मालूम है, उसको उसने गुप्त रक्खा और सिर्फ अपनी और अपने अंश और कलाओं यानी औतार और देवताओं वगैरह की पूजा का उपदेश आम तौर पर जारी किया या अपनी कलायें, पैगंबर रुप, में भेजकर अपनी और उनकी पूजा और प्रतिष्ठा समझाई।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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