आज आरती के समय पढा गया बचन
(बचन भाग-1 से परम गुरु महाराज साहब के बचन नं. 24 का अंश)
2 जून, 1907- जब तक सतगुरु की परतीत नहीं आवेगी और प्रीति नहीं आवेगी और नाम का सुमिरन नहीं पकाया जावेगा, तब तक शब्द नहीं खुलेगा। सतगुरु राधास्वामी दयाल का ही रूप हैं। उनके रूप का ध्यान करने से गोया निज रूप से मेल करना है। और राधास्वामी नाम ऐसा सच्चा और असली नाम है कि उसके सुमिरन को अपने अंतर में पकाने से निज नाम से मेल होगा।
धन्य धन्य गुरु देव, दयासिंधु पूरन धनी ।
नित्त करूँ तुम सेव, अचल भक्ति मोहिं देव प्रभु।
राधास्वामी🙏🙏🙏
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