सेवा का फल
*एक बार की बात है बाबाजी सेवादारों को प्रसाद दे रहे थे..!*
*सभी सेवादारो ने प्रसाद लिया, एक सेवादार पीछे खड़ा था..!!*
*बाबाजी ने उसे देखा, और कहा, भाई तू भी मांग ले, जो मांगना है..!*
*तो वो सेवादार बोला, मेरे 'दाता' मैंने कोई सेवा ही नहीं की, तो मैं क्या मांगू जी..!!*
*बाबाजी ने कहा, सोच ले, कोई तो सेवा की होगी..!!*
*तो वो भाई बोला, मुझे तो याद नहीं है जी..!!*
*तो बाबाजी फिर बोले, कोई तो सेवा की होगी...*
*वो भाई फिर बोला, मुझे तो याद नहीं जी..*
*तो बाबाजी बोले, अगर तुझे याद नहीं, तो हम बता दें क्या..??*
*बाबाजी बोले, कि तूने एक बार झाड़ू का एक तीला निकला पड़ा था, तुमने वो तीला झाड़ू में डाल दिया था, और वो झाड़ू काफी देर सेवा में इस्तेमाल किया गया, जिससे तेरी सेवा भी बनी है. !!*
*वो सेवादार ये सुनकर दंग रह गया और उसकी आँखों में आंसू आ गए..!!*
*संगत जी, दिल से कि गई थोड़ी सी सेवा भी मालिक के चरणों में मंजूर होती है, और वे उसका फल भी आपको ज़रूर देते हैं..!!*
*कोशिश करनी चाहिए कि सत्संग, सेवा , सिमरन का कोई मौका हाथ से ना जाए जी...*
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