सतसंग का महत्व......
नियमित सत्संग में आने वाले एक
आदमी नें जब एक बार सत्संग में
यह सुना कि जिसने जैसे कर्म किये
हैं उसे अपने कर्मो अनुसार वैसे ही
फल भी भोगने पड़ेंगे । यह सुनकर
उसे बहुत आश्चर्य हुआ अपनी आशंका
का समाधान करने हेतु उसने सतसंग
करने वाले संत जी से पूछा..... अगर
कर्मों का फल भोगना ही पड़ेंगा तो
फिर सत्संग में आने का क्या फायदा
है.....?
संत जी नें मुसकुरा कर उसे देखा
और एक ईंट की तरफ इशारा
कर के कहा की तुम इस ईंट को छत
पर ले जा कर मेरे सर पर फेंक दो ।
यह सुनकर वह आदमी बोला संत जी
इससे तो आपको चोट लगेगी दर्द होगा ।
मैं यह नहीं कर सकता.....
संत ने कहा....अच्छा, फिर उसे उसी
ईंट के भार के बराबर का रुई का
गट्ठा बांध कर दिया और कहा अब
इसे ले जाकर मेरे सिर पे फैंकने से
भी क्या मुझे चोट लगेगी....??
वह बोला नहीं.....
संत ने कहा.....
बेटा इसी तरह सत्संग में आने से
इन्सान को अपने कर्मो का बोझ
हल्का लगने लगता है और वह हर
दुःख तकलीफ को परमात्मा की
दया समझ कर बड़े प्यार से सह
लेता है ।
सत्संग में आने से इन्सान का मन
निर्मल होता है और वह मोह माया
के चक्कर में होने वाले पापों से भी
बचा रहता है और अपने सतगुरु की
मौज में रहता हुआ एक दिन अपने
निज घर सतलोक पहुँच जाता है,
जहाँ केवल सुख ही सुख है।
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