🙏 *मेरे अंदर मैं ही नही हूँ, बाकी सब संसार है। कूड़ा कचरा भरा पड़ा है*
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हम हमेशा मानते है और विश्वास कर रहे हैं कि...."मैं" ... , एक हूँ और हमेशा एक सा हूँ, मतलब कि "मैं" एक इकाई (single individual unit) हूँ । मैं और मुझ में एकता का अभाव नहीं है।
लेकिन सच यह है कि मेरे अन्दर हमेशा एकता का आभाव है । अपने मन में यह वहेम या मान्यता रखना की, “मैं एक इकाई "मैं" हूँ”, यह हमारी बहुत बड़ी गलती है।
और यह सबसे बड़ा भ्रम है की जो भी मैं समझता हूँ या जो कुछ भी कार्य मैं करता हूँ या जो कुछ भी निर्णय मैं लेता हूँ, वह मेरे इकलौते व्यक्तित्व "मैं" से आ रही है । इसी भ्रम में सब आदमी अपनी पूरी जिंदगी जी रहै है।
मनुष्य हमेशा बदल रहा है। वह आधे घंटे के लिए भी वैसा का वैसा नहीं बना रह सकता है। हम बहुत से "मैं" का एक समूह हैं, हम एक भीड़ हैं, हमाँरे पास बीवी के लिए अलग चेहरा हैं, अलग "मै" है, और अलग व्यक्तित्व हैं, नौकर के साथ दूसरा चेहरा हैं या दूसरा व्यक्तित्व हैं, और बॉस के साथ तीसरा चेहरा या तीसरा व्यक्तित्व है। और ऐसा नहीं है कि यह सब हम अपनी इच्छानुसार करते हैं। और कभी-कभी तो, विशेष परिस्थितियों में हमारे अन्दर से इतने सारे व्यक्तित्व या “मैं” निकल के आते हैं, कि हमने भी पहले कभी इन्हें नहीं देखा होता है। और कई बार हम यह देखकर चकित होते हैं कि हमारे बावजूद या मेरी जानकारी के बिना, यह कैसे होता है ।
तो सबसे पहले हमें यह तथ्य स्वीकार करना है कि, मैं कोई एक अकेला व्यक्तित्व नहीं हूँ, जबकि, बहुत से व्यक्तित्व से मिलकर या काफी “मैं” से बना हूँ.
दूसरा, हमें अपने अलग-अलग व्यक्तित्वों को, या “मैं” को जो हमारे अन्दर हैं, उन्हें पहचानना शुरू कर देना चाहिए । ऐसा करने के किए, हमें, 'स्वयं के ऊपर ध्यान' यानि (self remembering) बनाये रखना होगा । जब तक कि हम पूरे होशपूर्वक नहीं रहते हैं, वंहा तक हम अपने अलग-अलग "व्यक्तित्व" या “मैं” को नहीं पहचान सकते हैं ।
जो व्यक्ति अपने साथ जितने व्यक्तित्व लेकर जीता है। वो उतना अशांत और बेचैन रहता है। ये नियम है। उसे उतना बाहर की चीजें चाहिए, मनोरंजन चाहिए, अपने व्यक्तित्वों के पोषण के लिए। वो एक मिनेट शांत नही बैठ सकता। इसलिए जब तक कि कोई व्यक्ति अपने अन्दर एक स्थायी व्यक्तित्व या “मैं” का विकास नहीं कर लेता, उसके शांति प्राप्ति के लिये किये गए सब प्रयास व्यर्थ है।
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