Sunday, October 11, 2020

प्रेमपत्र औऱ सेवा सदन ( नाटक )

  **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज - 

【स्वराज्य】

 कल से आगे:

- गवर्नर किस तरीके से?- बगावत करके? 

 अफसर- तरीके का इसने जिक्र नहीं किया ।

 गवर्नर- इसके जिम्मे इल्जाम क्या ? 

अफसर- बगावत के लिए शुबह।

 गवर्नर -यह मुश्तबह इलजाम है- और कुछ कहना है? 

 अफसर-( सोचकर) हुजूर! नहीं। 

 गवर्नर -माता! तुम्हें बरी किया गया -मेहरबानी करके आयन्दा जल्सो में बोलते वक्त मजीद एहतियात रखना- आप लोगों का आजादी के लिए कोशिश करना बुरी बात नहीं है लेकिन हुकूमत के खिलाफ हतकआमेज या बगावतअंगेज कलमात  की बर्दाश्त न की जायगी - अब तुम अपने घर जा सकती हो । 

 वृद्धा- इस कृपा के लिए आपका धन्यवाद करती हूँ लेकिन इस बेगुनाह बहन को छोड़कर घर जाना मुझे मंजूर नहीं है। 

 गवर्नर- क्या तुमको हमारे इंसाफ पर ऐतबार नहीं है।  वृद्धा- जरूर है । 

गवर्नर- अगर है तो आप मेहरबानी करके अपने घर चली जायें- आपको अदालत की हाजिरी में जो तकलीफ हुई उसके लिए अफसोस है। 

राजकुमारी- माता जी! हुकुम मानो और घर चली जाओ।

   [ वृद्धा नमस्कार करके अदालत से बाहर चली जाती है] 

क्रमशः             

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


प्रेमपत्र 



*परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1

- कल से आगे:

- (6) 

यह हालत मन की इस सबब से हो गई कि यह मन और सुरत बहुत समय बल्कि अनगिनत काल से अपने निजी स्थान से जुदा होकर अनेक जन्मों से संसार और उनके भोग विलास में भरम रहे हैं और अपने निज घर की खबर और भेद बिल्कुल भूल गये और भ्रम कर संसार को अपना देश और इस देह को अपना रूप और दुनियाँ के भोगों को अपना आहार और सुखदाई और कुटम्बियों को अपना सच्चा शुभचिंतक और मददगार समझा है और उन्हीं के वास्ते अपना वक्त और अपनी चैतन्यता खर्च कर रहे हैं । 

यह बड़ी भूल और गफलत और नादानी हैं। 

क्रमश:🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



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