**राधास्वामी!! 03-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) मन के घाट बैठे स्रुत घर की सुद्ध बिसारी। इंद्रियन सँग भरमाय फँसी अब भोगन लारी।। सतसँग जल अशनान कर ले तन मध आज पखारी। गुरु चरनन परतीत लाय नित आरत सेवा धारी।। करम धरम सब त्याग कर दे भोगन को बिसराय। शब्द जोग अभ्यास कृ ले सूरत अधर चढाय।। प्रेम सँग भीज रहे सारी।।-( राधास्वामी दरशन नित चहूँ मेरे और न दूजी आस।। दया पर तन मन धन वारी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-4-पृ.सं.69,70
(2) गुरु ने मोहिं(हमारे) गुरु ऐसा रतन बढ दिया।।टेक।। भाव घटे नहिं मोल न उतरे मुहर छाप सिर किया।।-(राधास्वामी सतगुरु नाम रतन दे निर्धन धनवर किया।।) (प्रेमबिलास-शब्द-118-पृ.सं-174,175) (3) यथार्थ प्रकाश-भागग दूसरा-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 03-01- 2021
- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे -(111)
- प्रश्न -आपका तात्पर्य यह समझ में आया कि आत्मा और परमात्मा का सारतत्व या जौहर एक है इसलिए जिस मनुष्य की आत्मा जागृत हो और परमात्मा से एक हुई हो उसे साधारण मनुष्य समझना भूल है। उसके मनुष्य- शरीर में परमात्मा ही का प्रकाश है, इसलिए वह ईश्वर ,परमात्मा, खुदा आदि के समान ही समझा जाता है।
पर आपके मत में ईश्वर का अवतार समझ लेना. लेना भी तो माना जाता है।भला सर्वव्यापक ईश्वर परिमित मनुष्य-शरीर में कैसे समा सकता है ,और जब ईश्वर मनुष्य- शरीर में समा गया तो उसका अपना काम कौन करता है ? और इस हिसाब से तो मनुष्य- शरीर ईश्वर से भी बड़ा सिद्ध होता है क्योंकि ईश्वर उसके अंदर समा जाता है ।। ?
उत्तर -जब किसी ऊँचे धाम के धनी ब्रह्म, पारब्रह्म, सत्तपुरुष या कुल मालिक की मौज होती है या यों कहिये कि जब सृष्टि- नियम यह सूरत पैदा करते हैं कि किसी ऊँचे धाम की चेतनता का पृथ्वी पर प्रकाश हो तो उस धाम के धनी की एक किरण बीच के स्थानों को चीरकर पृथ्वी पर उतर आती है और मनुष्यरूप धारण करके अपने धाम और धनी का भेद प्रकट करती है। धनी पूर्ववत् अपने धाम में बना रहता है। हमारी आत्मा भी तो कुलमालिक की एक किरण है । तो जबकि यह सहज में मनुष्य- शरीर धारण कर सकती है तो किसी धाम के धनी की किरण के लिए भी मनुष्य शरीर धारण करना एक सरल क्रिया होनी चाहिए । और जबकि हमारी किरण-रुपी आत्माओं के पृथ्वी पर उतर आने से मालिक पूर्ववत् सर्वव्यापक बना रहता है तो किसी धाम के धनी की किरणविशेष के उतर आने से उसकी भी नित्य-अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए । यह किरण क्या है ?
उत्तर --चेतनता के स्रोत से निकली हुई चेतनता की एक नदी है। इस का सदा अपने उद्गम या स्रोत से सीधा संबंध जुडा रहता है। इसका जल स्रोत ही का जल है यह वास्तव में स्रोत ही का फैलाव है और-जैसा कि इस ईशोपनिषद के शांतिपाठ में बतलाया गया है - "पूर्ण है वह और पूर्ण है यह । पूर्ण से पूर्ण ही निकलता है। और पूर्ण से पूर्ण निकाल लेने पर पूर्ण ही बचता है", धनी और यह अवतार- स्वरूप भी पूर्ण ही रहते हैं । असल श्लोक भी लिखा जाता है :- ओम पूर्णमदः पूर्ण पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा
-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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