**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-बचन भाग 1-( 4 )
-17 अप्रैल 1938
-आज का शुभ दिन सत्संग के नये युग में एक ऐतिहासिक दिवस गिना जायगा। आज सत्संगियों ने अपने प्रीतम को सत्संग चबूतरे पर कुर्सी पर विराजमान देखा। आज के दिन प्रेमियों के अत्यंत आग्रह और प्रार्थना पर हुजूर ने फरमाया - "सत्संगी भाई व बहने यह जानकर अत्यंत प्रसन्न होंगे कि इस समय राधास्वामी दयाल की दया की धार बड़े जोर शोर से लहरा रही है और उनकी रक्षा व सँभाल का पंजा संगत पर प्रकट रुप से अनुभव होता है क्योंकि इस समय जिस काम में भी हाथ लगाया जाता है सफलता ही सफलता होती है। यदि इंडस्ट्रीज की वृद्धि के लिए प्रयत्न किया जाता है तो सफलता होती है और यदि सतसंग की वृद्धि के लिए जमीन की जरूरत होती है तो इच्छा अनुसार जमीन आसानी से मिल जाती है। सतसंगी भाइयों व बहनों को इस समय कमर कस कर कार्यक्षेत्र में उतर आना चाहिए और सेवा और कुर्बानी के लिए पूरी तरह तैयार रहना चाहिए।"
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-【 शरण आश्रम का सपूत】 कल का शेष:-
😝प्रेमबिहारी-( खड़े हो कर) मैं सत्संग का जरखरीद गुलाम हूँ और सब संगत का दास हूँ। मैं इस सब तारीफ के लायक नहीं हूँ। तारीफ हुजूर राधास्वामी दयाल की है जिनकी मैहर से मुझे आज का दिन देखना नसीब हुआ।
मेहर करे जब सतगुरु अपनी। बिना माँग करवावें करनी।।
M शोभावंती-( खुशी के आँसू लाकर ) हुजूर राधास्वामी दयाल! आप धन्य हैं। सत्संगी भाईयों और बहनों ! आप धन्य है
प्रेमबिहारीलाल और श्रीमती रीटा। आप भी धन्य हैं । शराणाश्रम! तू भी धन्य है। और आज के दिन ! तू भी धन्य है। आप लोग ऐसा आशीर्वाद दें कि हम तीनों आखिरी दम तक सत्संग की सेवा करते रहें और हुजूर राधास्वामी दयाल की दया सदा हमारे अंग संग रहे।
रीटा यह नाचीज़ भी सब भाइयों और बहनों का शुक्रिया अदा करती हैं और निहायत अदब व दीनता के साथ चेक एक लाख पौण्ड का सभा की खिदमत में पेश करती है। मेरी माँ ने यह रकम मरते वक्त मुझे इसलिए दी थी कि आइंदा जब मेरी शादी हो उस दिन किसी कारे खैर में लगा दूँ। यहाँ के शरणाश्रम से बढ़कर और कोई क्या कारे खैर हो सकता है। मैं निहायत ममनून हूँगु अगर सभा यह हकीर रकम कबूल करके मेरे गुन्जयें दिल को शिगुफ्ता करेगी।( चीयर्स)।
मजमे में से एक आवाज- इस बूढ़े बिरोधचन्द की भी मुबारकबाद ले लेना भाई प्रेमबिहारीलाल! मैंने जो कुछ तुम्हारे साथ किया था तुम्हारे फायदे ही के लिये किया था। देखो ! वह आज तक तुम्हारे गुन आया। बूढ़े का कहा और आमले का खाया पीछे ही साथ देता है । मैं अपने वादे पर बदस्तूरर कायम हूँ- शरणाश्रम को सौ रुपये जरूर दूँगा।
दूसरी आवाज-हाय रे भिखारीलाल शरणाश्रम न हुआ-सारे रुपये इसी को मिलते! प्रेयबिहारीलाल जी! मुंशी भिखारीलाल भी अभी जिंदा है। मुबारकबाद!( सब मिलकर गाते हैंं )
●●गाना●● धन्य धन्य सखी भाग हमारे, धन्य गुरु का संग री।।टेक।।
मैं अति दीन निबल नाकारी, जानूँ न कोई ढंग री।।१।।
चरन लगाय गुरु भाग जगाये, दीनी भक्ति उतंग री।।२।।
अटल सुहाग दिया गुरु प्यारे, बख्सा रंग सुरंग री।।३।।
बारम्बार करूँ शुकराना, मन में जगाय उमंग री।।४।।
जगत जीव यह मरम न बुझे, सुन सुन होते दंग री।।५।।
मेहर करे जब राधास्वामी सतगुरु, संशय भरम होयँ भंग री।।६।।
(ड्राप सीन)
।।समाप्त।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
*(🌹🌹(हुजूर राधास्वामी दयाल की दया व मेहर से आज 【शरण आश्रम का सपूत】 नाटक संपन्न हुआ ।)
ll कल से हम परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज द्वारा रचित पवित्र पुस्तक-【 गीता के उपदेश】 शुरू करने जा रहे हैं।ll
हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में कोटि-कोटि प्रार्थना है कि अगर हमसे अनजाने में इस दौरान कोई त्रुटि हो जाये तो उसके लिए हम सभी क्षमाप्रार्थी है।
हुजूर राधास्वामी दयाल के चरनों में इस सेवा के लिये कोटि-कोटि शुकराना। ll
ll 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻🌹🌹** ll )
**परम गुरु हुजूर महाराज
-प्रेम पत्र भाग 1- कल से आगे:
- अब जीवो को इख्तियार है कि अपने अपने भाग और अधिकार या समझ और विचार के मुआफिक अपने असली और हमेशा का सुख हासिल करने के लिये संत सतगुरु के बचन के मुआफिक कार्यवाही करें या न करें , क्योंकि जो वे अब और आप से चेत कर अपने जीव के कल्याण के निमित्त कुछ थोड़ी बहुत तवज्जह और मेहनत करेंगे तो उनके हक में हर तरह से बेहतर होगा, यानी सुख और आनंद के साथ परमार्थ की दौलत आहिस्ता आहिस्ता हासिल करेंगे ।और जो अपने मान और अहंकार और नादानी के ज्यादती से आप से आप नहीं चेतेंगे और होश नहीं करेंगे , तो वक्त और मौका मुनासिब पर वह मालिक दयाल आप उनके चेतने और परमार्थ की कार्रवाई करने का बंदोबस्त , जिस तरह मुनासिब और उनके हक में बेहतर होगा, आप करेगा ।।
मालूम होवे कि सिवाय ऊपर के लिखे हुए सवालों के दो सवाल और भी है कि जिनका बयान खोल कर पिछले प्रेमपत्रों में हो चुका है और इस वास्ते उनका जवाब यहाँ पर दोबारा लिखना फिजूल समझा गया। और वह दो सवाल निस्बत हस्ती सच्चे और कुल मालिक की और जीव या सुरत उसकी अंश होने की बाबत है। सो बयान हो चुका है कि राधास्वामी दयाल कुल मालिक और सर्व समरथ है और जीव उनकी अंश है, जैसे सूरज और सूरज की किरन। और यह दोनों अमर है।
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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